*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
08/08/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
चकित।
सदा ही व्यथित।।
कुकर्मों के फंदे में फँसा।
परिणाम से अनभिज्ञ भी नहीं,
पूर्ण उन्मुक्त हो कभी कहीं भी नहीं हँसा।।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
पतित।
कैसे हो पावन।
जीवन बने मनभावन।।
ईश्वरोन्मूलक ग्रंथ स्वाध्याय से,
शुभ-चिन्तन से होगा जीवन सुरभित।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
थकित।
जब तन मन,
कर्म निश्चित अकलित।।
समय की ही धारा देखते रहे,
पछताते जब औरों के भाग्य हो फलित।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
क्षरित
होती हर क्षण
तन से असीमित ऊर्जा
जब सकारात्मकता से भरी हो
तो जीवन का चरमोत्कर्ष होता है प्राप्त।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय