*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
05/08/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
सम्राट।
व्यक्तित्व विराट।।
शौर्यशाली प्रजापालक।
विक्रमादित्य के जैसे अब कहाँ
शेर के दाँत गिनने वाला बालक।।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
ललाट।
विशाल उन्नत।
सीना फौलादी समुन्नत।।
नसों में वीरता का लहू दौड़ता,
वीर शिवाजी की सत्य गाथाएँ भी विराट।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
कपाट
खुला रखो मत,
होती है यहाँ लूटपाट।।
महानगर है कोई गाँव नहीं,
होते रहते है दिन दहाड़े मारकाट।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
उचाट
हुआ मन अब
खेल तमाशा देखकर
ढ़ूँढ़ रहा हूँ कोई उचित स्थान
जहाँ सारी आपबीती को स्वयं लिख सकूँ।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय