*परिमल पंचपदी— नवीन विधा*
परिमल पंचपदी— नवीन विधा
04/08/2024
(1) — प्रथम, द्वितीय पद तथा तृतीय, पंचम पद पर समतुकांत।
कामिनी।
भावों की पाणिनी।।
अप्रतिम रस वारिधि।
नेहानुप्रास की अनूठी प्रणेता,
छांदस काव्य की अमर अनमोल निधि।।
(2)– द्वितीय, तृतीय पद तथा प्रथम, पंचम पद पर तुकांत।
भामिनी
जीवन संगिनी।
काव्याकाश की कादंबिनी।।
पाँवों में पद्म शोभायमान होते,
नित्य निरंतर विराजित चित्तवासिनी।।
(3)— प्रथम, तृतीय एवं पंचम पद पर समतुकांत।
स्वामिनी।
प्रेम राज्य की तू,
तू शक्ति प्रिये आह्लादिनी।।
नव रस लय गति ताल छंद,
हे सुहागिनी सुहासिनी मेरी अर्धांगिनी।।
(4)—- संपूर्ण पंच पद अतुकांत।
यामिनी।
प्रेमगीत गाती
पायल छनकाती हुई
चुपके से कानों में आके कहती
मैं ही तो हूँ हे कविराज तुम्हारी वामांगी।
— डॉ रामनाथ साहू ‘ननकी’
छंदाचार्य, बिलासा छंद महालय