Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Mar 2022 · 9 min read

परित्यक्ता

परित्यक्ता

पाठकों! परित्यक्ता कहानी एक विवाहित जोड़े के बिछड़ने की कहानी मात्र नहीं है ।यह सामाजिक विघटन और चारित्रिक मूल्यों के अवमूल्यन की कहानी है। जिसे समाज ने स्वीकार किया है ।आधुनिकता विलासिता भोगवाद की प्रवृत्ति में वृद्धि का अर्थ यह नहीं कि, पौराणिक, सांस्कृतिक सनातनी सभ्यता का अंत निकट आ गया है। यह भारतीय संस्कृति को स्वीकारने और अस्वीकार ने की मध्य की स्थिति है। वर्तमान में समाज संस्कारों के इस असंतुलन को आधुनिकता की होड़ बताकर पल्ला झाड़ रहा है। समाज इस अंधी दौड़ के दुष्परिणाम से बच नहीं सकता ।जहां मर्यादा पुरुषोत्तम राम समाज के प्रेरणानायक हैं, वहां आधुनिकता, संपन्नता, भोग विलासिता की आड़ में नैतिक मूल्यों का क्षरण असंभव प्रतीत होता है।

एक छोटा सा शहर गौरा जिसके पूर्व में जौनपुर शहर व पश्चिम में प्रतापगढ़ शहर है। इन दोनों बड़े शहरों के मध्य त्रिशंकु की तरह स्थित शहर गौरा है। शहर गौरा में विकास की गतिविधियां चरम पर हैं। राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बिंदु होने के कारण नैतिक एवं अनैतिक कार्यों के मध्य द्वंद छिड़ा रहता है। कभी नैतिक गतिविधियां सुर्खियां बनती हैं ,कभी अनैतिक गतिविधियां ।गौरा शहर सुर्खियों में हमेशा रहता है।
ठाकुर अम्बर सिंह गौरा शहर के जाने-माने कास्तकार हैं ।इनके पास करीब डेढ़ सौ एकड़ कास्त है। शुद्ध राजनीतिक, सांस्कृतिक परिवेश में ठाकुर अम्बर सिंह अपना जीवन यापन अपने जीवन संगिनी अंबालिका सिहं के साथ कर रहे हैं। ठाकुर साहब संपन्न कृषक होने के साथ-साथ एक पुत्र रत्न एवं दो पुत्री रत्न से भी मालामाल हैं। पुत्र का नाम ठाकुर निकुंज नाथ सिंह एवं पुत्रियों का नाम कल्पना सिंह व अल्पना सिंह रखा गया है।

पुत्री कल्पना सबसे बड़ी बेटी है। उसकी उम्र 18 वर्ष की है ।उसने प्रतापगढ़ शहर के एक प्रसिद्ध महाविद्यालय में दाखिला लिया है। वह हॉस्टल में निवास करती है। शुद्ध आध्यात्मिक संस्कारों से युक्त कल्पना अपने खान-पान आचार -व्यवहार का बहुत ध्यान रखती है। एकादशी का व्रत रखना उसने अपनी मां से सीखा है।
हॉस्टल में राग -रंग भरे माहौल का प्रभाव अभी उस पर नहीं पड़ा है। देर तक मूवी देखना ,मोबाइल पर अश्लील वीडियो देखना ,अश्लील बातें करना, शराब पीना, ताश खेलना हॉस्टल की दिनचर्या का हिस्सा है। छात्राओं का हॉस्टल भी इससे अछूता नहीं है कल्पना की एक सहेली है, आराध्या। वह प्रतापगढ़ की रहने वाली है। वह आधुनिक संस्कारों को मानने वाली महिला है। छोटे कपड़े पहनना ,पाश्चात्य फैशन में जीवन यापन करना उसका शौक है। उसका परिवार भी छद्म आधुनिकता के रंग में रंगा हुआ है। उसे कल्पना की सादगी भरी पोशाक, आध्यात्म की तरह झुकाव ,पठन-पाठन कुछ भी नहीं सुहाता। वह कल्पना को देहाती गंवार ना जाने क्या-क्या विशेषताओं से सुशोभित करती है। किंतु ,कल्पना कभी उसकी शिकायत अपने माता-पिता से नहीं करती। आराध्या की मित्र मंडली बड़ी थी। उसके कुछ पुरुष मित्र भी थे। किंतु ,कल्पना के लिए इसका कोई अर्थ नहीं था। कल्पना के अनुसार आराध्या एक ऐसे स्वप्नलोक में जी रही है, जो कभी भी टूट कर बिखर सकता है ।वह आराध्या को बहुत समझाती, किंतु आराध्या मानती ही नहीं थी। कल्पना की बातों का बुरा भी वह नहीं मानती।

कभी-कभी कल्पना के माता-पिता प्रतापगढ़ आते तो उनकी भेंट कल्पना व आराध्या से होती ।कल्पना का छोटा भाई निकुंज नाथ भी अपनी दीदी से मिलने कभी- कभार हॉस्टल आता ।कल्पना को अपने भाई पर बहुत गर्व है। वह माता-पिता का आज्ञाकारी संस्कारी पुत्र है। वह दोनों दीदियों का बहुत ध्यान रखता है। और उनसे कुशल क्षेम पूछता रहता है ।दोनों बहने अपने भाई को जी जान से अधिक प्यार करती हैं। ठाकुर अम्बर सिंह को मालूम है कि, उनका पुत्र होनहार है। वह उसे चिकित्सक बनाना चाहते हैं। कल्पना की छोटी बहन अल्पना फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने जौनपुर जा रही है। उसे फैशन डिजाइनिंग में अपना भविष्य सुरक्षित दिख रहा है ।निकुंज नाथ हाई स्कूल की परीक्षा की तैयारी कर रहा है। उसका पठन-पाठन सुचारू रूप से चल रहा है। घर में सुख शांति का वातावरण है।

बड़ी बहन कल्पना ने ग्रेजुएशन पास कर लिया है ।आराध्या ने किसी प्रकार नकल का सहारा लेकर ग्रेजुएशन पास कर लिया। दोनों सहेलियां अपने अपने घर जा रही हैं। एक दूसरे से मिलने का वादा करके वह सब अपने अपने गंतव्य को रवाना हो जाती हैं। कुछ दिनों तक कल्पना हॉस्टल की जिंदगी में खोयी रहती है। उसे लगता है कि आराध्या उससे कह रही है कि,

यह क्या दकियानूसी स्टाइल है, दुनिया बहुत आधुनिक है। लड़के आजकल स्मार्ट, आधुनिक लड़कियां चाहते हैं ।उन्हें तुम्हारी तरह व्रती, सीधी -साधी लडकी अच्छी नहीं लगती ।अपनी च्वाइस बदलो।

कल्पना ने सोच लिया कि किसी के कहने पर वह अपने जीवन की स्टाइल बदलने वाली नहीं है ।उसे सीधा सादा जीवन पसंद है। और, सलवार कुर्ता से बढकर कोई वेशभूषा नहीं है ।

आराध्या जोर देकर कहती- पढ़लिख कर केवल पति सेवा और घर गृहस्थी नहीं करनी है ।अपनी स्वयं की कुछ चाहते होती है। कुछ स्वप्न होते हैं ।उन्हें पाना हमारा कर्तव्य है ।

कल्पना कहती -मुझे ज्ञात है कि समाज की प्रति मेरा क्या उत्तर- दायित्व है। मेरा निजी जीवन भले पति और परिवार के साथ गुजरे। किन्तु, समाज की मर्यादा होती है। हमें उसका पालन करना पड़ता है ।हमें चाहिए कि हमारी नई पीढ़ी सुसंस्कारी होनी चाहिए ।उच्छृंखलता निरंकुश जीवन, अश्लीलता पतन का कारण बनते हैं।
अचानक मां ने पुकारा- बेटा कल्पना! मानों कल्पना तंद्रा से जागकर यथार्थ में आ गई। उसने हाँ माँ कहा, और मां के साथ काम में हाथ बटाने लगी। माँ ने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ,बेटा माता -पिता का घर एक रैन बसेरा है। सभी लड़कियों को अपने -अपने घर याने ससुराल जाना होता है। तेरे लिए पिताजी ने एक अच्छा रिश्ता देखा है। पड़ोस के ग्राम में ठाकुर सोमनाथ जी का परिवार रहता है ।उनका बड़ा बेटा समाज कल्याण विभाग में नौकर है। जमीन जायदाद भरपूर है ।लड़का सुंदर पढ़ा-लिखा संस्कारी है। किसी बात की कमी नहीं रहेगी। कल्पना ने शर्म से सिर झुका लिया और उठकर जाने लगी, तभी, मां ने कहा, बेटा लड़के वाले आज शाम को तुम्हें देखने आ रहे हैं। तैयार रहना। इसके साथ ही माँ ने लड़के की तस्वीर कल्पना के हाथ में रख दी।वह अपने कमरे में लौट आई। और ,धीरे से नेत्र चारों तरफ फिराते हुए तस्वीर पर नेत्र जमा दिया।उसे एहसास हुआ चित्र में जो व्यक्ति है, वह उसका होने वाला पति है। इस एहसास ने उसे अंदर तक गुदगुदाया ।उसके चेहरे पर विस्मय की लकीरें खिंचने लगी।कौतूहल से उसका सम्पूर्ण शरीर काँपने लगा। उसने धीरे से चित्र तकिए के नीचे रख दिया।

कल्पना को उसकी प्यारी छोटी बहन से कुछ भी छुपाना कठिन था ।अल्पना ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा, दीदी! देखे तो हमारे होने वाले जीजा जी कैसे दिखते हैं?
दीदी ने झिड़कते हुए कहा, क्या जीजा जी की रट लगा रखी है ।अभी दिखाती हूं।
कल्पना ने चित्र अल्पना के सम्मुख रख दिया। सांवरा, सलोना ,गोरा रंग अच्छी कद काठी का युवक दिखाई पड़ता है ।आंखें सुडौल, भवैं घनी मूछें सपाट हैं ।
अल्पना ने दीदी से पूछा, दीदी!तुम्हें मूछों वाला लड़का पसंद है या बे मूछों वाला।
दीदी ने तुनक कर कहा- मूछों वाला। अल्पना ने कहा यह लड़का तो बेमूछों का है। तो, तुम्हें ना पसंद है ।इसे मैं रख लूं ।
दीदी ने झिड़कते हुए कहा, मूँछें तो मर्दों की खेती हैं, जब चाहे बढ़ा लो या साफ कर दो ।तो अल्पना ने अंदाज लगाते हुए कहा ,तो ,मां से कह देती हूं कि तुम्हें लड़का बेहद पसंद है।
कल्पना इसके पहले कि कुछ कह पाती ,अल्पना सीढ़ियां उतरती चली गई ।उसके खिलखिलाहट काफी देर तक कमरे में गूंजती रही ।कल्पना ने समझ लिया कि छोटी बहन ने मां से सब सच- सच कह दिया होगा ।वह अभी आती होगी। थोड़ी देर में मांँ ने कमरे में कदम रखा और अल्पना को दीदी को तैयार करने हेतु आवश्यक निर्देश व कपड़े आदि दिये।अल्पना दीदी को शाम के लिए तैयार करने लगी और कल्पना खुशी-खुशी तैयार होने लगी। शाम होते ही ठाकुर अम्बर नाथ के यहां ठाकुर सोमनाथ आतिथ्य हेतु अपने सुपुत्र सहित सपत्नीक पधारे।

बेटे निकुंज नाथ ने अगवानी करते हुए अपने पिता के साथ अतिथि सत्कार में योगदान किया ।बच्चे के शुभ संस्कार से ठाकुर सोमनाथ प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। उन्होंने उसे ढेर सारा आशीर्वाद दिया। सभी अतिथियों ने अपना आसन ग्रहण कर लिया ।ठाकुर अंबर सिंह व अंबालिका ने कल्पना बिटिया को जलपान हेतु प्रस्तुत होने कहा। अतिथियों ने भी कन्या को देखने का सप्रेम विनम्र आग्रह किया। कल्पना ने सुंदर परिधान पहन रखे थे। अल्पना ने कल्पना की सुंदरता में चार चांद लगा दिये हैं। कल्पना सहजता से आहिस्ता आहिस्ता कदम बढ़ाते हुए जलपान लेकर आगे बढ़ी। ठाकुर मृत्युंजय सिंह कल्पना को देखते रह गए ,मानों कल्पना स्वर्ग की कोई अप्सरा हो ।उसका ध्यान तब टूटा जब कल्पना ने अपने होने वाले ससुर को जलपान ग्रहण कराने के पश्चात मृत्युंजय से जलपान ग्रहण करने का आग्रह किया। मीठा सौम्य स्वर मृत्युंजय के कानों में मिश्री घोल गया। उसकी चेतना वापस आयी। उस ने मुस्कुराते हुए जलपान ग्रहण किया। अब कल्पना ने मां के पास आसन ग्रहण किया और नेत्र झुका लिये। अंत में ठाकुर सोमनाथ ने आतिथ्य सत्कार हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया। और, विवाह का निर्णय घर पहुंच कर सोच समझकर करने की बात कही। थोड़ी देर तक सही कल्पना और मृत्युंजय की भेंट ने एक दूसरे को अपनी तरफ आकर्षित किया ।यही संयोग उनके विवाह बंधन की आधारशिला बनने जा रहा है।

कुछ दिन बीते होंगे कि शुभ समाचार लेकर पंडित जी घर पर आये। उन्हें ठाकुर सोम सिंह ने भेजा है।उन्हें कन्या बहुत पसंद है अतः शीघ्र अति शीघ्र विवाह मुहूर्त निकाला जाए। जेष्ठ मास में कई शुभ लग्न है उन्ही में से किसी लगन पर विचार कर उचित मुहूर्त तय किया जाए ।विवाह की तारीख तय होते ही चट मंगनी पट ब्याह होना है। लड़का नौकरी पेशा है उसे अधिक अवकाश नहीं मिल सकता। विवाह उपरांत वर-वधू साथ में रहेंगे। और, अपनी गृहस्थी की गाड़ी दौड़ायेंगे ।अंततः दोनों का विवाह हो विवाह हो जाता है।ठाकुर अंबर ने खूब दान दहेज़ गहने आभूषण देकर कल्पना को ससुराल विदा किया। मृत्युंजय और कल्पना का समय कुशलतापूर्वक बीतने लगा। कभी कल्पना मृत्युंजय के साथ मायके चली आती। अपने माता-पिता से मिलकर खुश होती, कभी ससुराल में रहकर अपने श्वास-श्वसुर की सेवा करती। सब कुछ ठीक चल रहा है। गृहस्थी के आंगन में एक नन्हा मेहमान दस्तक देने लगा है।कल्पना गर्भवती है, यह बात जब मृत्युंजय को ज्ञात हुई वह खुशी से पागल हो गया।उसने कल्पना को बाहों में भर लिया।

धीरे-धीरे हंसी खुशी में 6 माह बीत गए। अब कल्पना को आराम की आवश्यकता चिकित्सक ने बतायी।अतः मृत्युंजय कल्पना को घर पर देखभाल हेतु छोड़ आया ।समय पूर्ण होने पर कल्पना ने पुत्ररत्न को जन्म दिया। कल्पना बहुत खुश थी। उसके मामा माता-पिता की खुशियों का ठिकाना नहीं था। शिशु नाना- नानी मौसी- मामा का प्यार पाकर नित्य बढ़ने लगा ।कुछ दिनों के लिए मृत्युंजय समय निकालकर कल्पना से मिलने आता।

इस बार मृत्युंजय बुझा बुझा है, उसने बताया कि उसका स्थानांतरण दूर गाजीपुर हो गया है ।उसे कुछ समय उस स्थान को समझने में लगेगा। घर किराए पर लेना है सब देखभाल कर वह बच्चे को कल्पना के साथ गाजीपुर ले जायेगा।
गाजीपुर बड़ा शहर है, उसकी चकाचौंध अनोखी है ।रात रात भर शराब नशे का दौर चलता है ।उसके मित्रों ने उसे अकेला पाकर शराब और नशे की लत में डाल दिया ।एक लड़की उसके बहुत करीब आ गयी। उसने मित्रता कर ली।अब वह लड़की के संग घूमने क्लब हाउस आदि जाने लगा। उस लड़की का नाम आराध्या है। आधुनिकता के नशे में चूर थी। उसने कल्पना के विरुद्ध उसके कान भरने शुरू कर दिये।मृत्युंजय को अब अपने बच्चे और पत्नी की सुध नहीं है।
एक दिन कल्पना अपने पिता के साथ बच्चे को लेकर गाजीपुर जा पहुंची। वहां पहुंचने पर मृत्युंजय की कारगुजारी का पता कल्पना को लगा। पड़ोसियों ने कल्पना को सब सच सच बयान कर दिया। कल्पना के पैर के नीचे से जमीन खिसक गयी।जब मृत्युंजय, आराध्या के साथ घर लौटा तो उसका सामना कल्पना से हुआ।उसे देखकर उसके होश उड़ गए। कल्पना ने उसी वक्त घर छोड़ने का निर्णय लिया। और मृत्युंजय से संबंध तोड़ने का निर्णय किया ।
एक तरफ भारतीय संस्कारों से सुसज्जित भारतीय नारी का रूप है दूसरी तरफ आधुनिकता के छद्म जाल में फंसी आराध्या का घिनौना रूप है। मृत्युंजय चाह कर भी इस घिनौने दलदल को पार नहीं कर पा रहा है।उसे कल्पना के रूप में चरित्रवान पतिव्रता स्त्री ना दिखाई दे कर चरित्रहीन नशेबाज आराध्या अधिक श्रेष्ठ नजर आ रही है ।

कल्पना स्वाभिमानी स्त्री है वह न केवल अपने पैरों पर खड़ी हुयी बल्कि अपने पुत्र को उसने अपने पैरों पर खड़ा किया। स्वावलंबन की यह अद्भुत मिसाल है।
वही मृत्युंजय आराध्या के प्यार में पड़ कर बर्बाद हो गया। नौकरी किसी तरह जाते-जाते बची। उसने आराध्य को अपना जीवनसंगिनी बना लिया। कल्पना ने अपने संस्कार जीवित रखते हुए अपनी मांग का सिंदूर आज भी अक्षुण रखा है।

आधुनिकता और वामपंथी विचारधारा को प्रश्रय देने वाले समाज के तथाकथित ठेकेदारों से यह प्रश्न उचित ही है। क्या स्वाभिमानी होना आधुनिकता का संबल नहीं है? क्या संस्कारी होना आधुनिकता में चार चांद नहीं लगाता? क्या परिधान तय करेंगे कि सभ्य समाज क्या है?

कल्पना एक पतिव्रता नारी है ।परित्यक्त नहीं ।बल्कि उसने संस्कार हीन पति का परित्याग कर समाज के सामने नए मानदंड स्थापित किए हैं। यह विघटन दो सभ्यताओं के मध्य असंतुलन द्योतक है। वामपंथी और सनातनी सभ्यता के मध्य की टकराव की स्थिति है ।जिसे तथाकथित सभ्य समाज कहा जाता है।

डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 512 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
View all
You may also like:
याद तो करती होगी
याद तो करती होगी
Shubham Anand Manmeet
जुगनू तेरी यादों की मैं रोशनी सी लाता हूं,
जुगनू तेरी यादों की मैं रोशनी सी लाता हूं,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"चली आ रही सांझ"
Dr. Kishan tandon kranti
🙅सनद रहै🙅
🙅सनद रहै🙅
*प्रणय*
"মেঘ -দূত "
DrLakshman Jha Parimal
दुनिया बदल गयी ये नज़ारा बदल गया ।
दुनिया बदल गयी ये नज़ारा बदल गया ।
Phool gufran
Home Sweet Home!
Home Sweet Home!
R. H. SRIDEVI
मेरा वतन
मेरा वतन
Pushpa Tiwari
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
भव्य भू भारती
भव्य भू भारती
लक्ष्मी सिंह
कुछ रिश्ते भी रविवार की तरह होते हैं।
कुछ रिश्ते भी रविवार की तरह होते हैं।
Manoj Mahato
क्या जनता दाग धोएगी?
क्या जनता दाग धोएगी?
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
विचारों को पढ़ कर छोड़ देने से जीवन मे कोई बदलाव नही आता क्य
विचारों को पढ़ कर छोड़ देने से जीवन मे कोई बदलाव नही आता क्य
Rituraj shivem verma
चंद अशआर
चंद अशआर
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
बहुत कुछ बोल सकता हु,
बहुत कुछ बोल सकता हु,
Awneesh kumar
-आगे ही है बढ़ना
-आगे ही है बढ़ना
Seema gupta,Alwar
"" *अक्षय तृतीया* ""
सुनीलानंद महंत
I love to vanish like that shooting star.
I love to vanish like that shooting star.
Manisha Manjari
बंधन में रहेंगे तो संवर जायेंगे
बंधन में रहेंगे तो संवर जायेंगे
Dheerja Sharma
बेबसी जब थक जाती है ,
बेबसी जब थक जाती है ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
3653.💐 *पूर्णिका* 💐
3653.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
*भीड़ से बचकर रहो, एकांत के वासी बनो ( मुक्तक )*
*भीड़ से बचकर रहो, एकांत के वासी बनो ( मुक्तक )*
Ravi Prakash
हाँ मेरी  जरुरत  हो  तुम।
हाँ मेरी जरुरत हो तुम।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
आवाज मन की
आवाज मन की
Pratibha Pandey
तोड़ सको तो तोड़ दो ,
तोड़ सको तो तोड़ दो ,
sushil sarna
सितमज़रीफी किस्मत की
सितमज़रीफी किस्मत की
Shweta Soni
चलो आज खुद को आजमाते हैं
चलो आज खुद को आजमाते हैं
कवि दीपक बवेजा
तेरे चेहरे की मुस्कान है मेरी पहचान,
तेरे चेहरे की मुस्कान है मेरी पहचान,
Kanchan Alok Malu
ചരിച്ചിടാം നേർവഴി
ചരിച്ചിടാം നേർവഴി
Heera S
रमेशराज की 11 तेवरियाँ
रमेशराज की 11 तेवरियाँ
कवि रमेशराज
Loading...