परिणय के बंधन से
प्राण प्रिये बँध जाएँ आओ
हम परिणय के बंधन में ।
जीवन की समरसता भर लूँ
आओ प्रिय आलिंगन में ।।
दूर गगन है रात अँधेरी
खाली मन का कोना है ।
अवसर दे दो अभिनंदन का
प्रीति दृगों में बोना है ।।
छवि मधुरिम मेरी चाहत की
देख सको जो कंगन में ।
प्राण प्रिये बँध जाएँ आओ
हम परिणय के बंधन में ।।
हृदय काव्य की शुचि कविता तुम
पढ़ लूँ अब अक्षर-अक्षर ।
वर्ण छंद लय की गरिमा से
भर दूँ तन की रस गागर ।।
तुम बन कर कोकिला सुरीली
भर जाओ स्वर व्यंजन में ।
प्राण प्रिये बँध जाएँ आओ
हम परिणय के बंधन में ।।
छू कर अधर-अधर से सजनी
पुष्प खिला दूँ तन -मन में
चाह कली की रस उमंग में
अर्पण कर दूँ जीवन में ।।
तुम्हें चूम कर मैं नयनों से
हृदय भंँवर के गुंजन में ।
प्राण प्रिये बँध जाएँ आओ
हम परिणय के बंधन में ।।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
3/10/2022
वाराणसी