परिचय
शीर्षक :–परिचय
देवेश काफी देर से युवा डाक्टर को अपनी पत्नी का इलाज करते देख रहे थे। पता नहीं क्यों उस युवा डाक्टर से उन्हें आत्मीयता महसूस हो रही थी। जिस तरह वह उनकी पत्नी का ख्याल रख रही थी,देखभाल कर रही थी उससे ऐसा लगता था कि मानो उनके परिवार की ही बेटी हो। उसके सफेद कोट पर नाम लिखा था अनामिका।
“डाक्टर, कब तक होश आयेगा मेरी पत्नी को?” उसे कक्ष से बाहर निकलते देख देवेश स्वयं को रोक नहीं सके और पूछ लिया।
“बाबा,चिंता मत कीजिए। दादी जल्दी ठीक हो जायेंगीं।आप आराम कीजिए।”डाक्टर ने मुस्कुराते हुये आत्मीयता से कहा।
“बेटा ,एक बात पूछूँ?” देवेश के मन की बात होठों पर आने को बेकरार थी।
“बिल्कुल बाबा,पूछिये!” उन्हें हाथ के सहारे से पास पड़ी कुर्सी पर बिठाते हुये वह बोली
“तुम रामदीन की बेटी अन्नू तो नहीं हो न?” डरते हुये धीमे स्वर में पूछा।
“बाबा, आखिर पहिचान ही लिया न आपने।”वह.खिलखिलाती हुई बोली।
“मतलव…तुम ..अन्नू?”
“हाँ बाबा , मैं अब डाक्टर बन गयी हूँ।ये देखिये मेरा आई डी कार्ड।”कोट के अंदर से अपना आई डी कार्ड निकाल कर दिखाते हुये कहा अनामिका ने तो देवेश की आँखें गर्व से भर आईं। उन्हें एक पल में ही गुजरा वक्त याद आ गया जब रामदीन को चौथी बेटी हुई तो उसके घर में कुहराम मच गया।नन्हीं सी बेटी को लेकर उनके पास आया था अनाथ आश्रम का पता पूछने। सब्जी का ठेला लगाने वाला रामदीन इतना नहीं कमा पाता था कि माता पिता ,बहन के साथ पत्नी व तीन बेटियों को ढंग से भोजन भी दे सके। देवेश ने उसे समझाया और उस बेटी का खर्च देने की बात की पर रामदीन कलह के कारण घर ले जाने को तैयार न था ।तब उस लड़की को एक किन्नर के हवाले कर दिया कि इसकी देखभाल करनी है सारा खर्चा वह देंगे। किन्नर ने पाँच साल की होने तक देख भाल की फिर वोर्डिंग स्कूल भेजा। पिता का नाम रामदीन ही लिखा गया। किस जगह पढ़ रही है यह सिर्फ किन्नर और देवेश ही जानते थे। इंटर के बाद किन्नर ने देवेश से पैसा लेना बंद कर दिया …उसके बाद आज देखा तो शकल याद आईक्यों कि उसके फोटो किन्नर उन्हें भी भेजती रही थी।
“बेटा..रामदीन…?”
“बाबा..वह मेरे साथ ही हैं..।आपने जो किया वह मुझे बता चुके हैं।”कहते हुये अनामिका की आँखें भर आई़ और उसने झुक कर देवेश के पाँव छू लिये।
स्वरचित ,मौलिक ,
अप्रकाशित
मनोरमा जैन पाखी
मेहगाँव ,जिला भिण्ड
मध्य प्रदेश