परिंदे बिन पर के (ग़ज़ल)
ग़ज़ल
परिंदे बिन पर के नही होते।
उड़ान बिना डर के नही होते।
हौसलों की बात कहां तक करें
यह भी बिना ज़र के नही होते।
रात कहे जा घर,उसे क्या पता,
इंसान बिन घर के नही होते।
जन्नत की बात बड़ी दूर दोस्त
यह भी बिना मर के नही होते।
पैसा रोटी कमाई जिस तरह
गये बिना शहर के नही होते ।
-‘प्यासा
विजय कुमार पाण्डेय
ग्राम-करपलिया, सीवान
बिहार