परिंदे ख्वाहिशों के ….
ख्वाहिशों के परिंदे अब फरफरा रहे हैं
कुछ डेग भर रहे हैं ,कुछ लड़खड़ा रहे हैं ।
कल तक नहीं था जिन को , खुद पर यक़ीन देखो
अब हौसले किए हैं , तो मुस्कुरा रहें हैं ।
:-सैयय्द आकिब ज़मील
ख्वाहिशों के परिंदे अब फरफरा रहे हैं
कुछ डेग भर रहे हैं ,कुछ लड़खड़ा रहे हैं ।
कल तक नहीं था जिन को , खुद पर यक़ीन देखो
अब हौसले किए हैं , तो मुस्कुरा रहें हैं ।
:-सैयय्द आकिब ज़मील