परहित की रख भावना
विषय-उपकार
विधा-दोहा
परहित की रख भावना, सदा करो उपकार।
सुख-दुख के साथी बनो, सुखी रहे संसार।।
डरो नहीं तुम मृत्यु से, रचो सुमृत्यु विधान।
परहित की रख भावना, मिलता जग सम्मान।।
परहित की रख भावना, करो न अत्याचार।
दया, प्रेम को मन बसा, तज दो द्वेष, विकार।।
परहित की रख भावना, पशु सम नर भू भार।
जन कल्याणी कार्य कर, तब होगा उद्धार।।
नम्र भाव तरुवर फले,सरिता देती नीर।
परहित की रख भावना, दोनों सहते पीर।।
दीन-दुखी उर से लगा, करता जो उपकार।
परहित की रख भावना, पाता जन से प्यार।।
घायल खग कर में उठा, बुद्ध बचाए प्राण।
परहित की रख भावना, मिला न्याय से मान।।
परहित की रख भावना, यही श्रेष्ठ है धर्म।
तजीं अस्थियाँ देह की, देवलोक हित कर्म।।
परहित की रख भावना, जन्म करो साकार।
निज हित हेतु जो जिए, जीवन है धिक्कार।।
परहित की रख भावना, कार्य करो सब नेक।
भूखा कोई न रहे, निर्धन यहाँ अनेक।।
क्षुधा मिटाई दीन की, दिया रंति ने भोज।
परहित की रख भावना, पुण्य किया हर रोज।।
सत्यनिष्ठ सद्भाव रख, होते आत्म विभोर।
परहित की रख भावना, बँधे नेह की डोर।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)