परशुराम जी
1.
आलय ऋषि जमदग्नि का , गिरिवर जानापाव ।
‘परशुराम ‘ जन्मे यहीं , पावन भावन ठाव ।।
2.
तपोभूमि जमदग्नि की , ‘जनकेश्वर’ का धाम ।
पंचमुखी हनुमान सह , देवघर परशुराम ।।
3.
शास्त्र युक्त ये मान्यता , छठा विष्णु अवतार ।
मर्यादा को ओढ़कर , किया भूमि से प्यार ।।
4.
तीज शुक्ल बैशाख की, पुनर्वसु नखत बीच ।
लिया अवतार विष्णु ने , ‘राम’नाम को सींच ।।
5.
शिव जी की आराधना , भोले हुए प्रसन्न ।
दिया ‘परशु ‘ वरदान में , राम हो गए धन्न ।।
6.
‘राम’ से ‘परशुराम’ भे , यही षष्ठ अवतार ।
प्रेरक समाज ,दानप्रिय , संस्कृति के आधार ।।
7.
आज्ञा पालन कर पिता , सिर काटा निज मात ।
वर माँगा पहला तुरत , माँ जीवित हों तात ।।
8.
‘भीष्म पितामह’ कर्ण के , गुरू थे परशुराम ।
बल पर अपने परशु के , किया घमंड तमाम ।।
9.
कार्तवीर्य पराजय की , है ये भूमि गवाह ।
आतताइयों को यहीं , पूरा किया तबाह ।।
10.
क्षत्रिय जन संहार को , किया इक्कीस बार ।
अहंकार की नींव पर , ये था उनका वार ।।
11.
जाति नहीं अभिमान की , और न कोई धर्म ।
अहंकार का अंत ही , सुधिजन का है कर्म ।।
12.
धनुष भंग सुन परशुधर , आए तन मन क्रोध ।
धनुष भंग किसने किया , कौन है वो अबोध ।।
13.
लक्ष्मण व परशु द्वंद को , दिया राम ने मोड़ ।
राम बोल बोले मृदुल , दिया दास ये तोड़ ।।
14.
विष्णु धनुष चढ़वा किया , झुककर ‘परशु’ प्रणाम ।
वरमाला पहना सकें , हुआ इस तरह काम ।।
15.
सीखा प्रभु श्रीराम से , मर्यादा का पाठ ।
स्वीकारा कृषि कर्म को , बढ़ा भूमि का ठाठ ।।
16.
‘अश्वस्थामा’ अरु ‘कृपा ‘ ,’विभीषण’ ‘ परशुराम’ ।
‘व्यास’, ‘हनुमान ‘ और ‘बलि’ , चिरंजीव ये नाम ।।
17.
रेणुधाम सह परशुधर , पूजनीय हैं नित्य ।
होय ‘ हितैषी ‘ प्रभु कृपा , पायँ हर्ष ये सत्य ।।
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प्रबोध मिश्र ‘ हितैषी ‘
बड़वानी (म. प्र . ) 451 551