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23 Jul 2017 · 1 min read

परम-प्रेमिका अब तलक दूर है

प्रेम-पुलकन पलक से झरी जा रही,
पर परम-प्रेमिका अब तलक दूर है।
उर की अभिलाषा ख़ुद में मरी जा रही,
पर परम-प्रेमिका अब तलक दूर है।
०००
माह सावन का सपने में आकर कहे,
अपने दिल में मुझे तू बिठा ले सरस।
रख स्वयं अपने दिल को प्रफुल्तित सदा,
भाव दुःख के ह्रदय में क्यों पाले सरस।
तेरे जीवन की स्वर्णिम घरी जा रही,
पर परम-प्रेमिका अब तलक दूर है।
०००
मैंने बोला मैं रहता प्रफुल्तित सदा,
किन्तु करता मैं उसका प्रदर्शन नहीं,
थोड़े दुःख आते लेकिन न डरता कभी,
दुःख के होते कहो किसको दर्शन नहीं।
प्रेम घड़ियाँ निकल रसभरी जा रहीं,
पर परम-प्रेमिका अब तलक दूर है।
०००
राह जीवन की मुश्क़िल बहुत मानता,
किन्तु बढ़ने का रखता सदा हौसला।
सत्य का हाथ थामे सदा मैं बढूँ,
झूठ से रखता मैं हर घड़ी फ़ासला।
लौट सपनों से फिर भी परी जा रही,
पर परम-प्रेमिका अब तलक दूर है।
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 377 Views
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