परपीड़क
एक परपीड़क को हमेशा दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने में मज़ा आता है , लेकिन वह यह नही समझ पाता है कि , जब वह संकट में होगा तो उसके रवैये और व्यवहार के परिणामस्वरूप उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ाने के लिए कोई भी उसके आसपास नहीं होगा।
एक परपीड़क को हमेशा दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने में मज़ा आता है , लेकिन वह यह नही समझ पाता है कि , जब वह संकट में होगा तो उसके रवैये और व्यवहार के परिणामस्वरूप उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ाने के लिए कोई भी उसके आसपास नहीं होगा।