परदेश आगमन
हमे लखन सा वनवासी बन, घर से दूर बहुत जाना है-
तुम्हे उर्मिला बनकर मेरी अवधपुरी में रहना होगा।
मेरे जाने का वह पल भी
कितना हृदयविदारक होगा
तेरे नयनों का खारा जल
मेरे दुख का कारक होगा
फिर भी मुझको एक वचन दो
कभी न विरह वियोग करोगी
मातु पिता की सेवा में ही
केवल अपना ध्यान धरोगी
उनके हर प्रश्नों का उत्तर, तुमको ही अब बनना होगा
तुम्हे उर्मिला बनकर मेरी अवधपुरी में रहना होगा
मेरी ही परछाई बनकर
मेरा धर्म निभाती। रहना
मर्यादाओं में रहकर तुम
घर को स्वर्ग बनाती रहना
मीठे मीठे स्वप्न सजाकर
अपना दिल बहलाना तुम
त्याग समर्पण निष्ठा से फिर
हर दायित्व निभाना तुम
क्रोध न करना कभी किसी से, प्रिये कष्ट सब सहना होगा।
तुम्हे उर्मिला बनकर मेरी अबध पूरी में रहना
दो दिन की ही दूरी है फिर
हम तुम दोनों पास रहेंगे
आगत अपना धानी होगा
हरे भरे मधुमास रहेंगे
विषम घड़ी भी टल जाएगी
फिर से यह मंजर बदलेगा
विरह वेदना मिट जाएगी
प्रेम मयूरा फिर मचलेगा
तब तक चंचल मन पर काबू, तुम्हे सहचरी रखना होगा।
तुम्हे उर्मिला बनकर मेरी अवधपुरी में रहना होगा।
अभिनव मिश्र “अदम्य”
शाहजहांपुर, उत्तत प्रदेश