परछाई
आज मन्नू माँ के देहांत के बाद पहली बार घर आई थी। माँ को गये तीन महीने से ऊपर हो गये थे। घर में सब कुछ पहले जैसा था । सब समान भी अपनी जगह पर था । मन्नू को लगा अभी माँ आयेंगी और उसे गले लगाकर कहेंगी,’ लाडो, कमजोर लग रही है। तबियत तो ठीक है ना ‘। घर में सब थे बस माँ ही नही दिखी । हर कोने में उनकी ही परछाई नज़र आ रही थी ।
तभी दो बाँहों ने उसे कसके जकड़ लिया’जिज्जी इतने दोनों बाद आई हो। ठीक तो हो ना।’ मन्नू भी भाभी से लिपट गई।’ हाँ भाभी ठीक हूँ। घर में सब कैसे हैं।’
भाभी हाथ पकड़कर माँ के कमरे में ले गई। सामने दीवार पर माँ की बड़ी तस्वीर लगी थी। देखकर मन्नू की आँखें भर आईं। पलंग पर पापा लेटे थे। उन्हें देखकर मन्नू उनके गले लग गई, ये क्या पापा इतने कमजोर कैसे हो गये।, भाभी बोली, ‘ जिज्जी क्या करें, कुछ खाते ही नहीं । बस अम्मा की तस्वीर से बातें करते रहते हैं ।’
मन्नू देख रही थी ,पापा अचानक कितने बूढ़े लगने लगे थे ।जब माँ ज़िंदा थी तो उन्हें कभी वक़्त ही नहीं था माँ के पास बैठने का ।और अब उनका कहीं जाने का मन ही नही करता था । बैठे2 बस दीवारें घूरते रहते हैं जैसे माँ को ढूंढ रहे हों ।
भाई को अचानक ज्यादा जिम्मेदार और भाभी को मुखर होते हुए देख रही थी मन्नू । घर की सारी जिम्मेदारी भाभी पर जो आ गई थी । पहले जो काम माँ से पूछ कर होते थे वो भाभी से पूछ कर होने लगे थे । माँ की तरह पल्लू में चाबी का गुच्छा बांधे पूरे घर को कुशलता से चला रही थीं।
मन्नू जितने दिन भी रही गुमसुम सी दीवारों ,अलमारियों, खिड़कियों , कपड़ों ,कोनों ,किताबों सबमे माँ को ही तलाशती रही ।
आज उसे वापस जाना था । रोहित लेने आये थे । उनका स्वागत भाभी ने वैसे ही किया जैसे माँ करती थी । लौटते वक्त विदाई भी ठीक उसी तरह । आंखें भर आईं मन्नू की जब भाभी ने गले लगाकर कहा ‘जिज्जी जल्दी आना मैं राह देखूंगी’ तो लगा उनके पीछे एक परछाई सी खड़ी है । अरे ये तो माँ हैं । फूट-फूटकर रो पड़ी मन्नू और बोली ‘हाँ!हाँ! भाभी माँ, जल्दी ही आऊंगी.’ और गाड़ी में बैठ गई। और उधर भाभी भी नम आँखों से सोच रही थी आज जिज्जी ने मुझे भाभी माँ क्यों कहा ???
08-11-2017
डॉ अर्चना गुप्ता