पन्नाधाय
त्यागमूर्ति मां पन्नाधाय
सिंहासन की रक्षा को यदि, सिंहनि गाय नहीं होती।
कुंअर उदय मारे जाते, यदि पन्नाधाय नहीं होती।।
मैं अदना-सा कलमकार, रहवासी चंबल घाटी का।
चंबल के जल से अभिसिंचित, भिण्ड भदावर माटी का।।
पौरुषता जिसके कण-कण में, शौर्य समाया रहता है,
दुनिया को इतिहास बताने निकला हल्दीघाटी का।
वीरधरा की यशगाथा, राणा सांगा की समरकथा।
बलिदानी तेवर ऐसे, कण-कण में व्यापी अमरकथा।।
देविस्वरूपा जयवंता, राणा प्रताप की जननी थी।
वो प्रताप के पूज्य पिता जी, उदय सिंह की पत्नी थी।।
उदय सिंह के बचपन की, मैं चर्चित बात बताता हूं।
दीपदान की किरणों से, वो स्याह रात दिखलाता हूं।।
राणा, चेतक, हल्दीघाटी, की बुनियाद नहीं होती।
कुंअर उदय मारे जाते, यदि पन्नाधाय नहीं होती।।
उदय अभी छोटा बच्चा था, राजकाज बनवीर करे।
मगर कुदृष्टि लगाए था वो, गद्दी पर अधिकार करे।।
नदी बनास किनारे उसने, दीपदान का खेल रचा।
राजमहल को किया इकट्ठा, कोई बाकी नहीं बचा।।
था उद्देश्य भीड़ में छिपकर, अपना पूरा काम करे।
उदय सिंह की हत्या करके, वो निष्कंटक राज करे।।
किंतु धाय मां ने वनवीरी, चालों को पहचान लिया।
दीपदान का खेल देखने, कुंअर उदय को रोक दिया।।
दीपदान का खेल हज़ारों, आँखें मन से देख रहीं।
पर वनवीरी आंखें उनमें, उदय सिंह को खोज रही।।
कुंअर उदय सिंह नहीं दिखा, तो खून आँखौं में उतर गया।
हवसखोर वनवीर खंग ले, राजमहल की ओर चला।।
राजमहल षणयंत्री होते, सच की राह नहीं होती।
कुंअर उदय मारे जाते, यदि पन्नाधाय नहीं होती।।
राजवंश की लाज बचाने, उसने मन में ठान लिया।
क्षत्राणी देवी पन्ना ने, निर्णय एक कठोर लिया।।
कीरत की डलिया में उसने, उदय सिंह को छुपा दिया।
उदय सिंह के बिस्तर पर, बेटे चंदन को सुला दिया।।
बोली, कुंभलगढ़ ले जाओ, चूक नहीं होने देना।
राजवंश का दीपक है ये, दीप नहीं बुझने देना।।
राष्ट्रधर्म के रक्षक को, सुत की परवाह नहीं होती।
कुंअर उदय मारे जाते, यदि पन्नाधाय नहीं होती।।
खंग हाथ में लिए खड़ा था, वो विक्रम का कातिल था।
मेवाड़ी सत्ता हथियाने, नीच हवश में पागल था।।
बोला ओ री दासी पन्ना, शत्रु कहां पर सोया है।
मेरे राजसिंहासन के पथ में इकलौता रोड़ा है।।
विक्रम का वध करने पर भी, मेरी प्यास अधूरी है।
राजवंश की नामनिशानी, मिटना बहुत जरूरी है।।
सिंह भवानी, तुलजा माता, अगर सहाय नहीं होती।
कुंअर उदय मारे जाते, यदि पन्नाधाय नहीं होती।।
गुर्जर की बेटी थी पन्ना, बोली ओ वनवीर सुनो।
जिसका खाया नमक, उसी के साथ दगाबाजी न करो।
कहां मानने वाला था वो, उस पर खून सवार हुआ।
समय साक्षी है इसका, वनवीर एक गद्दार हुआ।।
बोला, पन्ना बतला दे, है उदय सिंह किस बिस्तर पर।
वरना तेरे बेटे के टुकड़े करने पर हूं तत्पर।।
हत्यारे हवशी लोगों के, मन में आह नहीं होती।
कुंअर उदय मारे जाते, यदि पन्नाधाय नहीं होती।।
इकलौता बेटा था चंदन, हाय कलेजे का दुकड़ा।
बेटा या मेवाड़ इन्हीं में से इक रस्ता था चुनना।।
एक नयन में पुत्रप्रेम था, एक नयन में राष्ट्रधरम।
क्षत्राणी देवी पन्ना ने, मां तुलजा की खाई कसम।।
नौ महीने तक रखा पेट में, पल-पल जिसको प्यार किया।
प्रसववेदना से भी गुजरी, लेकिन हँस के जन्म दिया।।
पल्लू से मुंह पौछा जिसका, स्तनपान कराया है।
उस बेटे का वध देखेगी, जिसको गोद खिलाया है।।
इससे ज्यादा और भयानक, पीड़ा हाय नहीं होती।
कुंअर उदय मारे जाते, यदि पन्नाधाय नहीं होती।।
कांपा अंबर, दिग्गज डोले सागर ने धीरज खोया।
कुंअर उदय के बिस्तर पर तो, बेटा चंदन था सोया।।
पीर उठी, पर माता ने, छाती पर पत्थर धार लिया।
मुंह से बोली नहीं, इशारा भर बिस्तर की ओर किया।।
मुंह ढांके सोये बच्चे पर, खल ने क्रूर प्रहार किया।
वो समझा है उदय सिंह, उसने चंदन को मार दिया।।
बलिदानी रस्ते से बढ़कर, कोई राह नहीं होती।
कुंअर उदय मारे जाते, यदि पन्नाधाय नहीं होती।।
हिला हृदय मां पन्ना का, पर मुंह से आह नहीं निकली।
सुतवध देखा माता ने, आंसू की बूंद नहीं निकली।।
पन्ना मां तू पन्ना है, माटी का कर्ज़ा चुका दिया।
पुत्र किया बलिदान किंतु, मेवाड़ समूचा बचा लिया।।
जिसकी रग-रग में निष्ठा की, पावन गंगा बहती है।
वीरप्रसूता उस देवी को, दुनिया पन्ना कहती है।।
नारी सबला है, अबला की वो पर्याय नहीं होती।।
कुंअर उदय मारे जाते, यदि पन्नाधाय नहीं होती।।
-डॉ. सुनील त्रिपाठी निराला
भिण्ड, मो.9826236218