पद “काव़्य “
#पद_( काव्य)
नव साहित्यकार , पद काव्य सुनकर घबड़ा से जाते हैं कि यह प्राचीन कवियों की धरोहर है , हम इस पर नहीं लिख सकते हैं |
जबकि समझने पर आसान भी है।
पद काव्य , रचना की गेय शैली है। इसका विकास राग गीतों की परंपरा से माना जाता है। यह मात्रिक छन्द की श्रेणी में आता है। प्राय: पदों के साथ किसी न किसी राग का निर्देश मिलता है। तब पद को सम्बन्धित राग में ही गाया जाता है
पर हम आप राग का नाम नहीं जानते , यदि बारीकी से अध्ययन करें तो हम पाएगें कई पद हमारे काफी गेय मात्रिक छंदों पर भी हैं।
पद काव्य विधा,स्वतंत्र गेय विधा है जिसमें पहली पंक्ति या चरण टेक के रूप में होती है बाकी अन्य चरण दो भागों में , यति के माध्यम से विभक्त होते है जिसमें गेयता के अनुसार ही मात्राएं रख कर पद सृजन करने का विधान है। पहले भाग में मात्रा अधिक होती हैं, और दूसरे भाग में पहले भाग से कम मात्रा होती हैं।पद किसी भी गेय मात्रा भार छंद में लिखा जा सकता है | सुविधा के लिए हम अभी गेय मात्रिक छंद का नाम लिखकर संकेत कर रहे है ,
पद के ऊपर मात्रानुशासन (जैसे – मात्रानुशासन 16 – 12 ) ही लिखने की बात कही जाती है , पर हम समझते हैं , लकीर के फकीर न बनकर , लकीर से हटकर फकीर बनें
जिस गेय छंद में पद लिखा जा रहा है उसका नाम लिखने में बुराई क्या है ? गेय मात्रिक छंद लिखने वाला कवि पद लिखने की हिम्मत तो कर सकता है , वर्ना इस विधा के लेखक कवि खोजते रह जाओगे ,
बस ‘टेक’ पद का विशेष अंग होता है। अधिकांश टेक का मात्रा भार 16 मिला है , पर टेक घट बढ़ भी देखने को मिली हैं ।
पद के सभी चरणों की तुकांत होनी चाहिए , कहीं किसी पद में तुकांत बदलते भी देखा है | कितने छंदो में पद लिख सकते हैं , हमारा अन्वेषण जारी है , राग क्या है ? हम राग के फेर में नहीं उलझना चाहते। पद मात्रिक गेय छंद में आता है , और हम इसी तकनीक को लेकर सृजन करेगेंं , गेय पद होगा तो गायक राग पहचान कर गायन कर लेगा
जब इस बारे में अन्वेषण किया , गायकों से मिले ,तब जाकर यह निष्कर्ष मिला कि गायन लोक संगीत से प्रारंभ हुए हैं।
पर गायकों ने मात्रा बद्ध छंद को अपने हिसाब से अलाप देकर दुवराह किया या बीच में ठेका /क्षेपक (कुछ शब्द) देकर आरोह अवरोह से अलाप भरी ,है
जैसे ~
मैया मैं नहिं माखन खाओं
( मूल लेखन सूरदास , ) 16-12 सार छंद , राग रामकली )
(16 – 12 मात्रा के पद कई रागो में गाए जा सकते हैं )
पर अनूप जलोटा जी व कुछ अन्य ने (बीच मे ठेका देकर अलाप अपने हिसाब से भरे , जैसे –
मैया( री ई री री लम्बी अलाप )मैं नहिं माखन खाओं (ओ पर हल्की अलाप ) इसी तरह आगे के चरण में अपने स्वर अलाप दिए ।
इसी तरह 16 – 11 पद का राग गौरी के अलावा कई रागों में गाए जा सकते हैं , गा़यक अपने अलाप से गाता है , और यह प्रयोग अच्छे हैं , फिल्म के गाने भी गायक अपनी लय में गाते हैं , लेखक की लय पर नहीं , इसी पर पहले विवाद होते थे , पर गा़यक की अपनी मस्ती है , किशोर कुमार जी तो पूरा गाना खिचड़ी कर देते थे , कि कवि/लेखक सिर पीट लेता था , पर आनंद भी गा़यन में आता था ।
एक फिल्मी गाना –
चाहे कोई मुझे जंँगली कहे , कहने दो जी कहता रहे |
हम प्यार के तूफानों में घिरे हैं, हम क्या करें ||
(यह कवि ने लिखा था , पर गायक ने इसमें “याहू” ठेका/क्षेपक लगाकर ऐसे ऐसे अलाप लिए कि कोई उस समय का कोई गायक इसे गा न सका |
और न आज विभिन्न आवाजों के साथ कोई सही गा सकता है।
पर हम इसके फेर में न पड़कर छंद मापनी से पद लिखें ।
गेय होने से गायक अपने हिसाब से अलाप देकर गा ही लेगा ।
पहली पंक्ति या चरण का चयन प्रयुक्त छंद के प्रथम चरण के मात्रा भार बराबर रखते हैं , घट बढ के भी उदाहरण हैंं , पर हम आप प्रारंभिक दौर में , इन सब से बचें, छंद की मापनी से लिखें ।
टेक मिलाकर आप भी 6 या 8 पंक्तियों का पद बना सकते हैं
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देखे- 16- 11 (सरसी छंद में )पद , राग गौरी
ऊधौ मन नहिं भए दस बीस।
एक हुतो सो गयौ स्याम संँग, को अवराधै ईस॥
सिथिल भईं सबहीं माधौ बिनु, जथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकिरही आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस॥
तुम तौ सखा स्यामसुन्दर के, सकल जोग के ईस।
सूरदास, रसिकन की बतियां पुरवौ मन जगदीश ||
चले मन गंगा जमुना तीर।
गंगा जमुना निरमल पाणी, सीतल होत शरीर।
बंसी बजावत गावत कान्हो, , संग लियो बलबीर॥
मोर मुगट पीताम्बर सोहे , कुण्डल झलकत हीर।
मीराके प्रभु गिरधर नागर , चरण कंवल पर सीर॥
हमारा प्रयास -पद 16-11 सरसी छंद में
देखिए यहाँ सभी सरदार
भांति -भांति के लोग मिले है ,सबके अलग विचार ||
कोई. गुल को खिला रहा है , कोई है गुलजार |
कोई मंदिर मस्त मगन है , कोई मदिरा धार ||
कोई यहांँ शिकारी शातिर , कोई सरल. शिकार |
नहीं टोकना यहाँ सुभाषा , लगे सभी फनकार ||
पद में टेक को हर चरण के बाद , या दो चरण के बाद लगा सकते हैं। अनूप जलोटा जी जब पद गाते है , तब हर दो चरण के बाद टेक लगाते है | सुभाष सिंघई
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पद , मात्रा भार १६ – ११ (सरसी छंद)
संकट घन की थी विकट शाम ।
शक्ति लगी लछमन को घातक, बहुत दुखी थे राम ।।
खुशी मनाती रावण सेना , करे नृत्य अविराम ।
मेघनाथ फूला सा फिरता, समझे युद्ध विराम ।।
रंगोली दरबार सजाता , रावण मन सुख धाम ।
“कौशिक” तब लाए बजरंगी , बूटी कर में थाम ।।
सुरेन्द्र कौशिक
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सरसी आधारित पद सृजन १६/११,मात्रा , टेक १६
शारदे हरो तमस् अज्ञान।
पाप – पंक में धँसा हुआ मैं , कैसे हो कल्यान।
रोग भोग का लगा हुआ है, अवगुन की मैं खान।
ज्ञान चक्षु भी बंद पड़े हैं, हूँ बालक नादान।
विद्या ज्ञान दायिनी माता , करता तेरा ध्यान।
अवगुन मेरे दूर करो माँ,दो मुझको वरदान।
जीवन भर चरणों में रति हो, करूँ सदा सम्मान।
झुक “मनोज” पद आशिष माँगत, कर दो मुझे अमान।।
मनोज द्विवेदी
हरि ॐ तत् सत्
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देखे- 16-12 (सार छंद) में पद, राग रामकली
मैया! मैं नहिं माखन खायो।
ख्याल परै ये सखा सबै मिलि , मेरैं मुख लपटायो॥
देखि तुही छींके पर भाजन. ऊंचे धरि लटकायो।
हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसें करि पायो॥
मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं , दोना पीठि दुरायो।
डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा, स्यामहिं कंठ लगायो॥
बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्रताप दिखायो।
सूरदास जसुमति को यह सुख , सिव बिरंचि नहिं पायो॥
हमारा प्रयास – पद. 16-12 मात्रा (सार छंद में )
लोकतंत्र की महिमा न्यारी |
वोट. मांँगकर नेता बनते , बातें करते प्यारी ||
मिलकर जिनको हम सब चुनते , बन जाते अधिकारी |
फिर वह हमको चुन जाते हैं , पांँच साल में भारी ||
महिमा और कहाँ तक गाएं , शब्दों की लाचारी |
इसीलिए है चुप्प सुभाषा , करे न लम्बरदारी ||
सुभाष सिंघई
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पद , १६ – १२ (सार छंद )
कहें सत्य को नंदन फर्जी ।
मात-पिता की बात न मानें, करते हैं मनमर्जी ।।
बात मात से तब ही करते, जब हो खुद की गर्जी ।
आंँख दिखाने लगे पिता को, करते विनय न अर्जी ।।
मात -पिता की बात जहाँ पर, बने काटकर दर्जी ।
छोड़ो इन बातों को “कौशिक” , चले-चलो अब घर जी।।
सुरेन्द्र कौशिक… (गाजियाबाद)
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मीरा के पद 16- 14 ( ताटंक /,लावनी ) में पद ,
मतवारो बादल आयें रे
दादुर मोर पपीहा बोले , कोयल सबद सुनावे रे
काली अंधियारी बिजली में , बिरहा अती दर्पाये रे
(आगे का भाग मिला नहीं है )
हमारा प्रयास -पद 16-14 ताटंक लावनी ,
दुनिया की देखें मनमानी |
कौन श्रेष्ठ हैं कौन मूर्ख हैं , कौन यहाँ पर हैं दानी ||
पाप पुण्य हैं किसके अंदर , लेखा – जोखा नादानी |
अँगुली एक उठाकर हमने , चार स्वयं पर हैं तानी ||
उपदेश सभी के मुख में हैं, जगह – जगह पर हैं ज्ञानी ||
चुप रहना तू यहाँ सुभाषा , रखकर इज्जत का पानी
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अष्टछाप के कवि परमानंद जी का – पद. ( वीर / आल्हा छंद ) में 16-15 मात्रा में, टेक 15
कहा करौं बैकुंठहि जाय ?
जहँ नहि नंद, जहां न जसोदा, नहिं जहँ गोपी ग्वाल न गाय ।
जइ नहिं जल जमुना को निर्मल. और नहीं कदमन की छायँ ।
परमानंद प्रभु चतुर ग्वालिन , ब्रज तजि मेरी जाय बलाय ॥
पद. ( वीर / आल्हा छंद ) में 16-15 मात्रा में,
आज डराती काली रात।
चम-चम चमके दामिनि दमके, बदरा बरसे उफ बरसात।
झम-झम पानी बरस रहा है, होने को अब आयी प्रात।
सिहर-सिहर मैं राह निहारूँ , मन में गूँजे तेरी बात।
खोल द्वार को हवा सताये, रह – रह सिहरे मेरा गात।
अब मनोज मन मथता मन्मथ, कब आकर दोगे सौगात।।
मनोज द्विवेदी
हरि ॐ तत् सत्
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पद , 16- 10 , (विष्णुपद छंद में ) चरणांत दीर्घ ,
बेटी में सुर अपनेपन के |
खिलती बगिया-सी सुषमा से, देखे दर उनके ||
करती रहती चहल-पहल है , बेटी घर जिनके |
उड़कर हँसते चिड़ियों जैसे , कोनों के तिनके ||
आवाज जहाँ पर बेटी की , सुबह शाम खनके |
कहत सुभाषा सच्ची मानो , भाग्य जगें मन के ||
सुभाष सिंघई
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पद , 16- 10 , (शंकर छंद में ) चरणांत ताल 21 ,
मेरे शिव हरते सभी क्लेश |
बम-बम हरिहर जय शिवशंकर, नम: श्री सर्वेश
पुत्र आपके विध्न विनाशक ,गणपति श्री गणेश ||
भोले बाबा सब जन कहते , हैं जीव करुणेश ||
मायापति कहलाते शंकर , रहते गिरि प्रदेश |
शरणागत है यहाँ सुभाषा , लखो शिवा हृदेश ||
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नया– साथी छंद
पद , 12- 11 इस छंद को राग तोड़ी में गाया जा सकता है
गुरुवर लाखों प्रणाम |
श्रद्धा सुमन समर्पित, चरणों में अविराम ।|
ज्ञानपुंज सुखदायक, सुमरूँ आठों याम।
अनुकम्पा को पाकर , जग में पाया नाम।|
नाम आपका लेता , सफल हमारे काम।
कहत सुभाषा झुककर, गुरुवर तुम हो धाम ||
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शंका समाधान –
शंका – जैसे दोहा में चार चरण होते है , यहां पद में प्रथम चरण जो टेक है, उसमें चरण का एक भाग नहीं है | तब कैसे आप दोहा पद काव्य कह सकते है
समाधान – बिल्कुल सही कह रहे है आप , और अभी तक जितने भी पद गेय छंद मापनी से लिखे गए है वह सभी एक नाम ” पद” से पुकारे गए है | कालान्तर में छंद मात्रा भार छोडकर किसी मात्रा भार में पद लिखे जाने लगे , धीरे – धीरे नवांकुर कवि लेखकों ने इसे प्राचीन दुरुह विधा समझकर किनारा कर लिया , वर्तमान के कवि दोहा , सरसी , सार , लावनी मुक्तामणि इत्यादि सभी छंद लिख लेगें , पर इसी छंदों से पद लिखने की कहो तो मुँह ताकने लगते है |
किसी भी गेय छंद में , प्रथम चरण की एक यति पृथक करने पर शेष भाग को टेक का रुप देकर , आगे छंद विधानानुसार लिखने पर वह पद आसानी से लिख जाता है | पर वह कवि भी क्या करें , वर्तमान में एफ बी पर दोहा या अन्य छंदों के रखवाले मठघीश बैठे है , छंद का नाम लेकर पद पुकारा नहीं कि लाठी लेकर पिल पड़ेगें |
अत: कवियो से अनुरोध है इनका सामना करें या बचाव करते हुए लिख दे – आधार 13- 11 मात्रानुशासन दोहा छंद का |
पाठक. बंघु समझ जाएगेंं कि यह दोहा मात्रानुशासन का पद है , सरसी पद है सा कौन से छंद से पद बना है
सही है – सभी साहित्य सेवा के फकीर है
कोई लकीर के फकीर है – तो कोई लकीर से हटकर फकीर है
सादर ,सनम्र
© सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़) म०प्र०
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से पद को समझाने का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें
सादर