*पदयात्रा का मतलब (हास्य व्यंग्य)*
पदयात्रा का मतलब (हास्य व्यंग्य)
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जब किसी व्यक्ति के पास कोई पद नहीं होता है, तब वह पदयात्रा आरंभ करने की अवश्य ही सोचता है । पदयात्रा का सीधा साधा मतलब यह होता है; पद के लिए यात्रा अर्थात या तो कोई पद मिल जाए और जीवन की शुरुआत हो जाए अथवा जो पुराना खोया हुआ पद है, वह वापस आ जाए । इसी को पदयात्रा कहते हैं ।
बहुत से लोग इस गलतफहमी में रहते हैं कि पदयात्रा का पैदल चलने से कोई संबंध होता है । पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक रहता है, इसलिए व्यक्ति पदयात्रा करे या न करे, थोड़ा-बहुत पैदल तो चलता ही है । लेकिन उसके बाद उसे अपनी सुख-सुविधाओं से भरी हुई जिंदगी में वापस लौटना ही पड़ता है । यह थोड़ी है कि अगर पदयात्रा की है, तो पैदल चलता रहे । सूखी रोटी खाए, झोपड़ी में रहे, मटके का पानी पिए- यह सब पदयात्रा का अर्थ नहीं होता ।
पदयात्रा के बाद कई बार लोगों को पद मिल जाता है। जिनको पद मिलता है, उनकी पदयात्रा सफल मानी जाती है। लोग उनके पास उनके अनुभव पूछने आते हैं । उनकी पदयात्रा पर शोध-प्रबंध लिखे जाते हैं और उन्हें एक सफल पदयात्री के रूप में भविष्य के पद-यात्री अपने प्रेरणा स्रोत के रूप में देखते हैं।
कई बार पदयात्रा तो जोरदार हो जाती है । माइक,भीड़, फोटोग्राफर -सब कुछ बहुत चमाचम रहता है, लेकिन पद फिर भी नहीं मिलता । कई बार जनता चुनाव में हरा देती है । कई बार पार्टी के भीतर व्यक्ति मात खा जाते हैं । असफल पदयात्रा को इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में नहीं लिखा जाता । कई बार तो इतिहास के प्रष्ठों पर ऐसी पदयात्राओं का जिक्र भी नहीं होता ।
इतिहास बड़ा निर्मम होता है। वह केवल सफल लोगों को याद रखता है । पदयात्रा निकालो या बस-यात्रा निकालो या टैक्सी-यात्रा निकालो, लेकिन यात्रा का मूल उद्देश्य यात्री को कभी नहीं भूलना चाहिए । जिससे पद मिल जाए, वह यात्रा सफल है और जिससे पदयात्रा के बाद भी आदमी पैदल ही रहे, वह काहे की पदयात्रा ?
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
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