*पत्रिका समीक्षा*
पत्रिका समीक्षा
पत्रिका का नाम : इंडियन थियोसॉफिस्ट
संस्करण : अक्टूबर 2022 , खंड 120, अंक 10
प्रकाशक : प्रदीप एच. गोहिल द्वारा भारतीय अनुभाग थियोसॉफिकल सोसायटी, कमच्छा, वाराणसी 2210 10 यूपी इंडिया के लिए प्रकाशित
संपादक : प्रदीप एच.गोहिल अध्यक्ष थियोसॉफिकल सोसायटी का भारतीय अनुभाग
अनुवादक : श्याम सिंह गौतम
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समीक्षक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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“इंडियन थियोसॉफिस्ट” गंभीर विचारों से आच्छादित लेखों की एक ऐसी पत्रिका है, जिसे थिओसोफी के विचारों की गहराई में जाने के इच्छुक व्यक्तियों को अवश्य पढ़ना चाहिए । समीक्ष्य अंक में तीन लेख हैं ;पहला लेख संस्था के भारतीय अध्यक्ष प्रदीप एच. गोहिल द्वारा एक पग आगे शीर्षक से लिखा गया है इसमें श्रद्धा शब्द और विचार का लेखक ने विवेचन किया है। उसके अनुसार श्रद्धा को किसी व्यक्ति या विचार पर पूर्ण विश्वास के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । इसी क्रम में लेखक ने भगवान बुद्ध की शिक्षाओं का भी उल्लेख किया है, जिनमें श्रद्धा को पॉंच विद्याओं, सात महान कोषागारों, सात सत्य विचारों आदि के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में बताया गया है । लेख का अंत इस वाक्य से हो रहा है कि अपने में श्रद्धा का होना कि हम आध्यात्मिक उत्थान कर सकते हैं, निश्चित रूप से एक आगे का पग होगा । (पृष्ठ 371)
लेखक ने श्रद्धा को ठीक ही अपने गंतव्य के प्रति लक्ष्य साध कर रखने में सहायता करने वाला विषय बताया है । वास्तव में बिना श्रद्धा के हम किसी भी क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकते ।
टिम बॉयड द्वारा लिखित युवा और अड्यार का स्कूल ऑफ विजडम लेख विज्डम शब्द की व्याख्या कर रहा है। इसका अर्थ हिंदी में बुद्धिमानी, विवेकशीलता, प्रज्ञा आदि शब्दों से लिया जा सकता है लेकिन यह ठीक ही है कि अनुवादक ने विज्डम को अपने मूल शब्द के रूप में ही प्रयुक्त किया। थियोसॉफी का कार्य केवल एक ही है, एक ही वस्तु जो हमें चाहिए होती है, वह है नएपन की अनुभूति । लेखक ने स्पष्ट लिखा है कि “एक ही वस्तु जो कमरे में प्रकाश को चमकने से रोकती है, वह है दरवाजों या खिड़कियों का बंद होना । उनको खोलने का अवसर हमेशा वर्तमान रहता है।”( पृष्ठ 373 )
लेखक ने विज्डम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि हम वास्तव में थिओसोफी में विज्डम की खोज में आते हैं। लेखक के अनुसार -“अनेक आध्यात्मिक अभिलेखों में ऐसा कहा गया है कि जिसके सुनने के लिए कान होते हैं, उन्हें पाषाण भी शिक्षा देते हैं । क्या हमारे पास वह कान हैं ? “(प्रष्ठ 374)
एन. सी.कृष्णा का एक लेख डॉक्टर एनी बेसेंट के बारे में है, जिसमें उन्हें द डायमंड सोल कहा गया है अर्थात एक हीरे की तरह चमकती हुई आत्मा । इसमें लेखक ने डॉक्टर एनी बेसेंट के कुछ सहयोगियों का स्मरण किया है तथा उनके नेत्रों से एनी बेसेंट के दर्शन करने का एक अच्छा प्रयास किया है । सर्वप्रथम एन.श्रीराम का उल्लेख है जो 1953 से 1973 तक सोसाइटी के अध्यक्ष थे। लेखक के अनुसार आपने एक युवा के रूप में डॉक्टर एनी बेसेंट के साथ अनेक पदों पर कार्य किया है ।श्रीराम ने डॉक्टर एनी बेसेंट से यह बात सीखी थी कि “जो कुछ भी थिओसोफी के सिद्धांतों की सहमति नहीं है, उसे त्याग देना चाहिए ।” (प्रष्ठ 376 )
डॉक्टर एनी बेसेंट के बारे में श्रीराम का कहना था कि “जब वह भाषण देती थीं, तो उनकी बातों को बहुत कुछ लिख लेने और जीवन में उतारने लायक होता था। कोई भी देख सकता था कि सादा जीवन ,दानवीरता, मानवीयता, सहानुभूति उनके जीवन के तरीके थे।” लेखक के अनुसार श्रीराम ने सही अर्थ देने वाले शब्दों का चयन करना डॉक्टर एनी बेसेंट से ही सीखा था। डॉक्टर बेसेंट के जो संपर्क में आता था, वह अपने को उनके सबसे नजदीक मानता था ।
श्रीमती रुकमणी देवी अरुंडेल का विवाह इंग्लैंड में जन्मे थियोसॉफिस्ट जॉर्ज सिडनी अरुंडेल के साथ संपन्न होना भी लेखक के अनुसार डॉक्टर एनी बेसेंट के आशीर्वाद का परिणाम था ।(पृष्ठ 378 )
श्रीमती रुक्मिणी देवी अरुंडेल के अनुसार डॉक्टर बेसेंट की सलाह अच्छे नियम की तरह बहुत अर्थपूर्ण और शक्तिशाली होती थी, क्योंकि वह लोगों को उनकी रश्मियों के अनुसार पहचानती थी और उचित दिशा में विकसित करके एक सम्यक व्यक्तित्व में विकसित कर देती थीं।( पृष्ठ 378 )
लेखिका के अनुसार श्रीमती रुकमणी देवी अरुंडेल ने वर्ष 1936 में डॉक्टर एनी बेसेंट से प्रेरित होकर ही एक ऐसे कला केंद्र की स्थापना की, जो पारंपरिक मूल्यों पर आधारित है और जहॉं संगीत, कर्नाटक संगीत और भरतनाट्यम का प्रशिक्षण दिया जाता है ।(पृष्ठ 378)
लेख में श्री बी. शिवा राव नामक एक पत्रकार और संसद सदस्य का भी उल्लेख है, जिनका मत था कि उनकी एक पत्रकार के रूप में और जनसाधारण में वक्ता के रूप में सफलता डॉक्टर बेसेंट के संपादकीय लेख पढ़कर और गोखले हॉल अमेरिकन स्ट्रीट मद्रास में इनके वक्तव्य को सुनकर प्राप्त हुई थी (पृष्ठ 380)
पत्रिका में हमेशा की तरह “समाचार और टिप्पणियॉं” शीर्षक से देश और दुनिया में थियोसॉफिकल सोसायटी के कार्यों का विवरण है ।इसमें नार आशो जमशेद नुसरवान जी मेहता की 70 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर मुंबई के ब्लैवेट्स्की लॉज के बेसेंट हॉल में 1 अगस्त 2022 को हुआ आयोजन महत्वपूर्ण है । स्वागत भाषण में ब्लैवेट्स्की लॉज की अध्यक्ष बहन कश्मीरा खंभाता ने बताया कि इस बेसेंट हॉल में डॉक्टर एनी बेसेंट का भाषण सुनकर जमशेद जी मेहता ने थियोस्फी को अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरणा ली थी । ब्लैवेट्स्की लॉज के उपाध्यक्ष नवीन कुमार ने जमशेद जी मेहता का स्मरण करते हुए उनके द्वारा लिखी एक टिप्पणी पढ़कर सुनाई, जिसमें जमशेदजी मेहता अपने एक मित्र को यह समझाते हैं कि जोरोस्ट्रियनिज्म सामिष भोजन अर्थात मांसाहारी भोजन की अनुमति नहीं देता है। इस तरह यह समाचार धार्मिक परंपरावादी दृष्टि से मांसाहारी भोजन त्यागने के प्रति जमशेदजी मेहता के प्रयासों को एक उचित श्रद्धांजलि कही जा सकती है। समाचार रिपोर्ट बताती है कि जमशेद जी मेहता दस बार कराची के मेयर चुने गए थे। महात्मा गांधी ने उन्हें कराची के सबसे सच्चे व्यक्ति और थिओसोफी का सबसे अच्छा प्रतिनिधि बताया था ।
जब लोगों ने आधुनिक कराची के निर्माता के रूप में उनकी मूर्ति स्थापित करनी चाही थी, तब उन्होंने कराची के पहले मेयर की मूर्ति लगाने के लिए सबको प्रभावित किया था । (प्रष्ठ 382, 383, 384)
समाचारों से पता चलता है कि यूक्रेन में थियोसॉफिकल सोसायटी द्वारा मैडम ब्लैवेट्स्की का जन्मदिन 12 अगस्त 2022 को मनाया गया । यह आयोजन जूम एप के माध्यम से हुआ। कार्यवाही का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया ।
कुल मिलाकर पत्रिका थियोसॉफी के कार्यों तथा उसके प्रचार और प्रसार प्रसार के लिए किए जा रहे प्रयासों से पाठकों के एक बड़े वर्ग को जोड़ने का कार्य कर रही है। यह बधाई का विषय है । मुखपृष्ठ पर डॉक्टर एनी बेसेंट का चित्र आकर्षक है।