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5 Sep 2024 · 4 min read

*पत्रिका समीक्षा*

पत्रिका समीक्षा
पत्रिका का नाम: अध्यात्म ज्योति
संपादक:
1) श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत
61, टैगोर टाउन, इलाहाबाद 211002
फोन 39369 1 7406
2) डॉक्टर सुषमा श्रीवास्तव
एफ 9, C- ब्लॉक तुल्सियानी एनक्लेव, 28 लाउदर रोड, इलाहाबाद 211002 फोन 945 1 843 915
वर्ष 58, अंक 2, प्रयागराज, मई-अगस्त 2024
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समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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पत्रिका के भीतरी कवर पृष्ठ पर इसे ‘राष्ट्रभाषा हिंदी की प्रतिनिधि थियोसोफिकल पत्रिका’ बताया गया है। 58 वर्ष से यह प्रकाशित हो रही है। सचमुच थिओसोफी की प्रतिनिधि पत्रिका है। थियोस्फी की विचारधारा के अनुरूप विचारों के निर्माण तथा व्यवहार में लाने योग्य बातों की चर्चा पत्रिका के अंकों में होती है। इस अंक में भी है। सभी लेखक थियोस्फी के मूर्धन्य विद्वान हैं।

संपादकीय ‘उदयाचल’ शीर्षक से सुषमा श्रीवास्तव ने शुभ संकल्पित मनस की व्याख्या की है और कहा है कि जो व्यष्टि से ऊपर उठकर समष्टि के हित की सोचता है, वही सचमुच शुभ संकल्पित मनस होता है।

श्री पी.के.जायसवाल थियोसोफिकल सोसायटी, भारतीय शाखा के भूतपूर्व जनरल सेक्रेटरी हैं। आपका लेख समुद्र में मिलने वाली अनेक धाराऍं शीर्षक से पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि मनुष्य अपने उत्थान के दौरान आंतरिक स्तर पर विभिन्न देवों तथा प्रज्ञा के गुरुदेवों के संपर्क में आता है। जब वह अपनी महत्वाकांक्षाओं को समाप्त कर देता है, तब जागरूकता के शिखर पर पहुंच पाता है। यहां लेखक ने ‘लाइट ऑन द पाथ’ पुस्तक के इस कथन को भी उद्धृत किया है कि अपनी महत्वाकांक्षा का तो हनन करना है लेकिन कार्य उन लोगों की तरह करना है जो महत्वाकांक्षी हैं अर्थात कर्मों के मार्ग से विश्राम नहीं लेना है। इसका अनुवाद सुषमा श्रीवास्तव ने किया है।

एक अन्य लेख श्री एस. एम. उमाकांत राव का है। यह भी थियोसोफिकल सोसायटी, भारतीय शाखा के भूतपूर्व जनरल सेक्रेटरी हैं। लेख का शीर्षक है आइए विचार करें। संक्षेप में लेखक का कहना यह है कि थियोस्फी के सिद्धांत को बौद्धिक रूप से समझना अच्छी बात है लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण और जरूरी यह है कि सिद्धांत को व्यवहार में लाया जाए। इस लेख का अनुवाद भी सुषमा श्रीवास्तव ने किया है।

डॉक्टर आई. के. तैमिनी द्वारा लिखित लेख का शीर्षक प्रार्थना का सैद्धांतिक आधार और इसका व्यावहारिक प्रयोग है। इस लेख में लेखक का कथन यह है कि दिव्य जीवन विश्व का आधार है। यह प्रत्येक आत्मा में निवास करता है और उसके साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित करना संभव है। महत्वपूर्ण बात यह है कि हम उसके साथ सामंजस्य कैसे बिठाऍं ? जब सामंजस्य बैठ जाता है, तब प्रार्थना का जो उत्तर प्रज्ञान से परिपूर्ण दिव्य जीवन से आता है; वह अत्यंत कल्याणकारी होता है। यह दिव्य शक्ति के अवतरण में भी सहायक होता है। यह अत्यंत शक्तिशाली होता है और अद्भुत परिणाम इससे प्राप्त हो सकते हैं। लेकिन प्रार्थना का उद्देश्य अभिमान और स्वार्थपरता को मजबूत करना नहीं होना चाहिए। लेखक ने यह भी बताया है कि मशीनी तरह से कुछ चुने हुए शब्दों को दोहराने-मात्र से कर्तव्य-पालन की संतुष्टि तो मिल सकती है, लेकिन उसका कोई प्रभाव उत्पन्न नहीं होगा। इसके लिए तो हमें अपने हृदय की गहराइयों से ईश्वर को पुकार लगानी होगी। इस लेख के अनुवादक रामपुर (उत्तर प्रदेश) निवासी स्वर्गीय श्री हरिओम अग्रवाल हैं।

स्मृति के विभिन्न आयाम सत्यमार्ग लॉज, लखनऊ के सचिव डॉक्टर विपुल नारायण का लेख है । इसमें स्मृति के संबंध में अत्यंत विस्तार से आपने चर्चा की है। बताया है कि स्मृति का कभी भी लोप नहीं होता। यह स्पंदनों के रूप में ब्रह्मांडीय चेतना में आकाशीय स्मृति के रूप में अंकित हो जाती है तथा संसार में कोई भी व्यक्ति अपनी चेतना के द्वारा ब्रह्मांड की चेतना से संपर्क करके पूरे विस्तार के साथ उन तथ्यों की स्मृति प्राप्त कर सकता है।
गर्भ में ही स्मृति धारण करने की भी चर्चा लेखक ने ‘रीडर डाइजेस्ट’ पत्रिका के 1990 अंक के हवाले से की है।

एक लेख जीत-जीत-जीत का सिद्धांत शीर्षक से गिरीश एन. पांडे का है। आपका कहना है कि केवल अपनी जीत अथवा दूसरे पक्ष की जीत से बढ़कर हमें संपूर्ण विश्व की जीत का भी ध्यान रखना चाहिए। इसी में सबका कल्याण है। यह भावानुवाद प्रहलाद सिंह मित्तल द्वारा किया गया है।

पत्रिका के अंत में समाचारों के क्रम में श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत द्वारा लिखित पुस्तक इलाहाबाद में थियोसोफिकल सोसायटी के प्रकाशन का समाचार छपा है। श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत थियोसोफिकल सोसायटी के इतिहास और कर्मठता की केवल साक्षी ही नहीं हैं, अपितु वह उसका एक प्रभावशाली सक्रिय अंग भी रही हैं। लेखिका की यह तीसवीं पुस्तक निस्संदेह थियोसोफिकल साहित्य के भंडार में उल्लेखनीय वृद्धि करेगी।

पत्रिका का कवर उसके दो पूर्व महासचिवों के चित्रों के प्रकाशन के द्वारा आकर्षक बना दिया गया है। सौभाग्य से यह दोनों भूतपूर्व महासचिव इस अंक के लेखक भी हैं । पत्रिका का छापना आजकल कठिन काम है। विचार-प्रधान पत्रिका निकालना और भी कठिन है। सात्विक समाज की स्थापना के कठिन कार्य के लिए संपादक-द्वय बधाई की पात्र हैं।

Language: Hindi
95 Views
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