*पत्रिका समीक्षा*
पत्रिका समीक्षा
पत्रिका का नाम: धर्मपथ (अंक 54/ जून 2024)
संपादक: डॉक्टर शिव कुमार पांडेय ,सचिव उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड फेडरेशन,थियोसोफिकल सोसायटी
मोबाइल 79 0 5515803
सह संपादक: कुमारी प्रीति तिवारी
मोबाइल 8318900811
संपर्क: उमाशंकर पांडेय
मोबाइल 945 1993 170
समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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धर्मपथ थियोसोफिकल सोसायटी की उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड फेडरेशन की नियमित पत्रिका है। इसके 58 पृष्ठ जून 2024 अंक के रूप में प्रकाशित हुए हैं। यह अध्यात्म के पिपासुओं को बहुत कुछ प्राप्त करा सकने में समर्थ है। आध्यात्मिक जीवन की ऊंचाइयों को स्पर्श करने में सहायक चार लेख इस अंक में प्रकाशित किए गए हैं।
पहला लेख मनस तत्व का जागरण है। यह डॉ. शिवकुमार पांडेय की प्रस्तुति है। चौथा लेख योगवशिष्ठ दर्शन भी आपकी ही प्रस्तुति है। सभी धर्मों से परे एक (पथहीन) सत्य भी आपके ही द्वारा अनुवादित लेख है। इसके मूल लेखक पेड्रो ओलिवेरा (पूर्व अंतर्राष्ट्रीय सचिव एवं संपादकीय कार्यालय प्रमुख) हैं। एक लेख मोक्ष शीर्षक से श्याम सिंह गौतम का है, जो चौहान लॉज कानपुर के अध्यक्ष तथा राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं ।
मनस तत्व का जागरण लेख में लेखक ने सीक्रेट डॉक्ट्रिन में मैडम ब्लेवैट्सिकी के द्वारा मन की व्याख्या को उद्धृत करते हुए लिखा है कि मन विचार इच्छा और भावना के अंतर्गत चेतना की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं का योग है। सीक्रेट डॉक्ट्रिन को ही उद्धृत करते हुए लेखक ने प्रत्येक मन्वंतर में होने वाली एक अद्भुत आरोही प्रक्रिया ‘महामाया’ के बारे में लिखा है, जिसमें मनुष्य एक ओर तो गहरी भौतिकता में डूबता है लेकिन दूसरी ओर वह शरीर के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष भी प्राप्त करता है। प्राचीन विचारों के अनुरूप सनत कुमार आदि ब्रह्मा के सात पुत्रों का भी लेखक ने उल्लेख किया है तथा यह भी बताया है कि सीक्रेट डॉक्ट्रिन के अनुसार कोई भी जीव निर्वाण तब तक प्राप्त नहीं कर सकता जब तक वह युगों की पीड़ा और बुराई तथा अच्छाई का ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेता। (प्रष्ठ 5, 11, 15)
पेड्रो ओलिवेरा ने अपने लेख में मांडूक्य उपनिषद में वर्णित तुरिया अवस्था का वर्णन किया है, जो शांतिपूर्ण, सब प्रकार से आनंद और अद्वैत, अनिर्वचनीय, अवर्णनीय स्थिति होती है। लेखक का मत है कि यही आत्मा है और इसी की हमें अनुभूति करनी होती है।
लेखक ने शंकराचार्य की पुस्तक विवेक चूड़ामणि में भी वर्णित ब्रह्म को परिभाषित करते हुए लिखा है कि ब्रह्म अनंत, शाश्वत तथा सर्वव्यापी प्रकाश है। इसको न तो पकड़ा जा सकता है, न छोड़ा जा सकता है। यह मन से अकल्पनीय, वाणी से अव्यक्त, अपरिमेय, बिना आरंभ और बिना अंत के है। (प्रष्ठ 23, 24)
मोक्ष शीर्षक से लेख में श्याम सिंह गौतम ने बताया है कि मोक्ष को प्राप्त करना आसान नहीं होता। इसमें मनुष्य को कामना, चिंताओं और संघर्षों से मुक्ति पानी पड़ती है। ब्रह्म और जीव के बारे में समझ को विकसित करना पड़ता है। अच्छे कार्य करना और नैतिक स्तर को ऊंचा उठाना भी पड़ता है। (पृष्ठ 35)
नारद परिव्राजक उपनिषद का उदाहरण भी लेखक ने दिया है। जिसमें बताया गया है कि ‘जीवन मुक्त’ व्यक्ति वही है जो अपमान और मान से ऊपर उठ जाता है ।
योगवशिष्ठ गहरा दार्शनिक ग्रंथ है। लेखक ने सूक्तियों के रूप में इसका सार लिखने का अच्छा प्रयास किया है। उसने बताया है कि संसार में इच्छा-विहीन होने का सुख स्वर्ग के सुख से भी बढ़कर है। आत्मज्ञान के सिवाय मोक्ष प्राप्ति का कोई दूसरा मार्ग नहीं है। शरीर से बढ़कर संसार में दूसरा कोई मंदिर नहीं है। परमात्मा को भीतर ही ढूंढना पड़ता है। कोई भी शास्त्र हमें आत्मज्ञान नहीं करा सकता। इसके लिए तो हमें स्वयं ही अनुभव करना पड़ेगा।
‘आत्मानुभूति’ के बारे में योग वशिष्ठ को उद्धृत करते हुए लेखक ने कहा है कि यह ऐसी अवस्था होती है जिसमें पुराने विचार समाप्त हो जाते हैं और नए विचार पैदा नहीं होते अर्थात विचार-रहित स्थिति को आत्मानुभूति कहते हैं। जीवन मुक्त पुरुष का लक्षण बताते हुए योग वशिष्ठ कहता है कि सामान्य व्यक्ति के और जीवन मुक्त व्यक्ति के व्यवहार में कोई खास अंतर नहीं होता, सिवाय इसके कि जीवन मुक्त व्यक्ति इच्छा विहीन होता है ।
पत्रिका के अंतिम प्रष्ठों में थियोसोफिकल सोसायटी की उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विविध गतिविधियों और कार्यक्रमों के बारे में संक्षेप में जानकारी दी गई है। पत्रिका का आवरण पृष्ठ प्रस्तुत वैचारिक सामग्री के अनुरूप ध्यान-अवस्था के उच्च स्तर को दर्शाता है। छपाई अच्छी है। शब्द चमकीले हैं। पढ़ने में सुविधाजनक हैं । संपादक मंडल को बधाई।