*पत्रिका समीक्षा*
पत्रिका समीक्षा
पत्रिका का नाम: इंडियन थियोसॉफिस्ट
अंक:दिसंबर 2023 खंड 121 अंक 12
संपादक: प्रदीप एच गोहिल
अनुवादक: श्याम सिंह गौतम
प्रकाशक: भारतीय अनुभाग थियोसोफिकल सोसायटी, कमच्छा, वाराणसी 221010 उत्तर प्रदेश, भारत
समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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प्रदीप एच गोहिल का संपादकीय स्तंभ आगे का एक कदम व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले चलने में सहायक सिद्ध होता है। इस बार भी आपने मनुष्य को जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के लिए दस सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया है। इनमें आसक्ति को छोड़ना, भय को समाप्त करना, संसार में सभी के प्रति सहानुभूति का व्यवहार करना तथा ध्यान दान स्वयंसेवा और दूसरों की सहायता आदि प्रत्येक संभव विधि से जीवन की ऊर्जा का विस्तार करने की सीख दी गई है। लेखक के अनुसार इन दिशाओं में विचार और कार्य करना जीवन की उचित दिशा में आगे का एक कदम होगा।
टिम बॉयड ने पवित्र स्थानों की शक्ति शीर्षक से अपने लेख में इस बात को बताया है कि संसार में बहुत से स्थान ऐसे होते हैं जहां पहुंचकर हमें एक दिव्यता प्राप्त होती है। उनके अनुसार इस प्रकार के स्थान पूरे संसार में हैं। उनमें से कुछ प्राकृतिक संसार के गुणधर्म वाले हैं जैसे पहाड़ झीले नदियां जंगल और गुफाएं। इसके अलावा अड्यार को पवित्र स्थान की शक्ति के रूप में रेखांकित किया है। उनका कहना है कि हमें अपनी प्रेम की शक्ति से किसी भी स्थान को अपने अनुकूल बनाने की शक्ति प्राप्त होती है। इसके लिए बौद्ध धर्म की लविंग काइंडनेस या मेत्ता ध्यान की ओर आपने पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। इसमें भगवान बुद्ध ने प्रतिकूल स्थान पर भी मेत्ता ध्यान लगवा कर अर्थात सबके प्रति प्रेम पूर्ण व्यवहार अपनाते हुए विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाने में सफलता प्राप्त की थी। लेखक के अनुसार ध्यान के लिए अगर घर का एक कोना हम सुरक्षित कर लेते हैं तो यह भी पवित्र स्थान की शक्ति की श्रेणी में आ जाता है।
अविद्या अलगत्व का कारण सुव्रलिना मोहंती का एक लेख है, जिसमें आपने बताया है कि मानव समुदाय में जो विभाजन प्रतीत होता है, वह अज्ञानता के कारण है तथा अज्ञानता को समाप्त करते ही यह कृत्रिम विभाजन समाप्त हो जाएगा। इसमें बहुत हद तक भय और असुरक्षा का भाव काम करता है। आपने इस बात पर जोर दिया है कि विद्यार्थी जीवन से ही बच्चों को सभी के साथ मित्रता का संबंध रखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। आप प्रश्न करती हैं कि यदि वे विद्यार्थी काल में ही सभी के साथ मित्रता का संबंध नहीं रख सकते हैं तो स्कूल छोड़ने के बाद पूरे संसार के मित्र कैसे बन सकते हैं ? लेखक ने अपना निष्कर्ष इन शब्दों में व्यक्त किया है-” हम अपना हृदय खोलें, गले लगाने के लिए अपनी बाहें फैलाएं, वैश्विक परिवार के लिए वैश्विक प्रेम और शांति को उत्पन्न करें”
पत्रिका के अंत में विभिन्न थियोसोफिकल सोसाइटी लॉजों में आयोजित कार्यक्रमों के समाचार और टिप्पणियां दी गई हैं ।पत्रिका का प्रकाशन सुंदर है। अनुवाद में प्रवाह है। पत्रिका के कवर पर जिस भवन का चित्र दिया गया है, उसका वर्णन किया जाना आवश्यक था।