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3 Aug 2024 · 1 min read

पता नहीं ये बस्ती जाने किस दुनिया से आई है।

पता नहीं ये बस्ती जाने किस दुनिया से आई है।
ख़ानक़ाह सी ख़ामोशी है मरघट सी तन्हाई है।।

■प्रणय प्रभात■

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