पता नहीं ये बस्ती जाने किस दुनिया से आई है। पता नहीं ये बस्ती जाने किस दुनिया से आई है। ख़ानक़ाह सी ख़ामोशी है मरघट सी तन्हाई है।। ■प्रणय प्रभात■