पता नहीं गुरुदेव
पता नहीं गुरुदेव, आप जो प्रेम की बात करते हो,
उसे अपने अंदर जगाऊं कैसे?
यह मन तो मेरा माया जोड़ने में उलझा हुआ है,
उसे तेरे श्री चरणों में लगाऊं कैसे?
चाहता हूं तेरे सतस्वरूप के दर्शन करना मैं भी,
लेकिन अज्ञानता के इन पर्दो को हटाऊं कैसे?
आपने ही कहा है, सतगुरु से अंतिम श्वास तक, यही आस लगाए रखना,
होऊंगा पार इन्ही चरण प्रताप, यह विश्वास बनाए रखना।
बस इसी आस और विश्वास से तेरे दर पर बैठा हूं,
हो जाऊंगा भव सूं पार, तेरे श्री चरणों में लेटा हूं।।
🥺🥺🥺🥺🥺
🙏🙏🙏🙏
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
ठि.:- बनेड़ा (राजपुर)