पता नहीं कब लौटे कोई,
पता नहीं कब लौटे कोई,
पता नहीं कब लौट न पाए।
पता नहीं कब किस हालत में,
अपना हाथ तंग हो जाए।।
पता नहीं कब डूब रहे को,
तिनका देने लगे सहारा,
पता नहीं कब किसके घर में,
किस्मत अशर्फियां बरसाए।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
पता नहीं कब लौटे कोई,
पता नहीं कब लौट न पाए।
पता नहीं कब किस हालत में,
अपना हाथ तंग हो जाए।।
पता नहीं कब डूब रहे को,
तिनका देने लगे सहारा,
पता नहीं कब किसके घर में,
किस्मत अशर्फियां बरसाए।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी