पता नहीं कब लौटूंगा फिर
इस गांव को छोड़ ना जाऊंगा
इस गली को छोड़ ना जाऊंगा
हम अपनों से कहीं दूर….
चला जाऊंगा तोs पता नहीं कब लौटूंगा फिर
सारा बचपन बीता मेरा इस गांव घर में
कैसे छोड़ जाऊं मैं अनजान शहर में
बड़ा लगाव मोरा गांव से
आशीष मिले मां के पांव से
कैसे जाऊं मैं सबसे दूर……
चला जाऊंगा तोs पता नहीं कब लौटूंगा फिर
जहां भी जाऊं मैं वहां चैन से रह ना पाऊंगा
याद सताएगी हमें गांव की कैसे भूल पाऊंगा
कितना सुंदर सा गांव
जहां मिले पीपल के छाव
लगन है पर मजबूर…..
चला जाऊंगा तोs पता नहीं कब लौटूंगा फिर
गीत – जय लगन कुमार हैप्पी ⛳