पतझड़ के मौसम भा गइल
बहर-२१२२ २१२२ २१२
काफिया-आ
रदीफ-गइल
हाय! फिर मौसम चुनावी आ गइल।
गाँव के माहौल सब गरमा गइल।१
चाय पर चर्चा चले दिन-रात अब,
दिन पियकड़न के लवटि के आ गइल।२
व्यस्तता अतना बढ़ल बा आजकल,
लोग अपने लोग के बिसरा गइल।३
ई पटल खोजत ह आपन एडमिन,
का भइल काहें सभे अगुता गइल।४
हो गइल दर्शन भी दुर्लभ देख लीं,
दिल मे बानी कहि के जे भरमा गइल।५
आज दावा सब करेला जीत के,
लोग पइसा पर जहाँ जुटिया गइल।६
रोड़ नाली के कइल वादा सभे,
भूलि जाला जे भी कुर्सी पा गइल।७
पी गइल बा खेत बारी बेंचि के,
शान दिखलावल अबे ले ना गइल।८
घाव देखलवनी गिरा के अश्क हम,
ऊ नमक ले हाथ में सहला गइल।९
बाग उजड़ल फूल सब कुम्हलात बा,
हाय! ई पतझड़ के मौसम भा गइल।१०
चैन ना आवत हवे कतहीं सुनऽ,
तूरि के दिल ‘सूर्य’ हमरो का गइल।११
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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