पतझड़ के दिन
मितवा , पतझड़ के ये दिन भी गुजर जायेंगे ,
चमन में बहारें आएँगी फूल फिर मुस्करायेंगे I
सारा ज़माना मुझे कुछ भी कहे, कोई गम नहीं ,
तुम न रूठना, मंजिल तुम हो यह ज़माना नहीं ,
दिल और जिगर में तुम बसे हो और कोई नहीं ,
पुष्पहार टूट कर बिखर जाये मैं वो फूल नहीं I
मितवा , पतझड़ के ये दिन भी गुजर जायेंगे,
चमन में बहारें आएँगी फूल फिर मुस्करायेंगे I
तेरी बेइंतहा मोहब्बत को हम कभी भुला न पायेंगे ,
जिन्दगी के अंतिम पल को तेरे साए तले में बिताएंगे ,
अपने देश आकर तुझे तेरे प्यार के किस्से सुनायेंगे ,
तोहफे में जहाँ से मोहब्बत का गुलदस्ता ले जायेंगे I
मितवा , पतझड़ के ये दिन भी गुजर जायेंगे,
चमन में बहारें आएँगी फूल फिर मुस्करायेंगे I
जब तक ”मैं“ था मेरे मन मंदिर में तुम नहीं थे मेरे पास ,
आज तुम ही समाये हो ”मैं“ नहीं रह गया अब मेरे पास ,
मेरा क्या लागे इस जहाँ में ? जिसे हम समझे मेरे पास ,
तेरा तुझको अर्पण है, नैनों को बची तुझसे अंतिम आस I
मितवा , पतझड़ के ये दिन भी गुजर जायेंगे,
चमन में बहारें आएँगी फूल फिर मुस्करायेंगे I
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देशराज “राज”
कानपुर