पढ के देखो
डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
पढ के देखो
काहे जग को दूं मैं गाली
जब रहे न जीवन दोष से खाली
देख देख के सब पगलाये
जग बौराया रहा सवाली ||
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हमरी हमसे तुम्हरी तुम से
दुनिया सबकी अपनी अपनी
भीर पड़ी भए सन्त गोपला
दीखन में तो ठन ठन लाला ||
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एक बार की कथा सुनाऊँ
विपत पड़ी जब मैं कुम्लाहूँ
नेता आये अभिनेता आये
हंसते हंसते गीत सुनाऊँ ||
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सुरज निकला किरणे फूटी
तबले की ताल पे थपक जो रूठी
ता था थय्या ता था थय्या
नदी किनारे राधा की थी पायल टूटी ||
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आसना हुँ दिवाना भी हुँ पागल नही
मयकदा है मयकश है आवारगी नही
तुम बताओ किस चीज की तलाश है
प्याला है साकी है मगर शराब नही ||
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