पडिंत रावण सा नही
पडिंत रावण सा नही, हुआ और विद्वान !
ले डूबा उसको मगर, उसका ही अभिमान!!
सच्चाई के सामने ,……. गई बुराई हार !
मिले दशहरा से यही, हमें सीख हर बार !!
मन में भीतर का अगर, दिया न रावण मार !
पुतले का करके दहन, नही निकलता सार !!
काम क्रोध मद लोभ सह, त्यागें दुर्गुण सर्व!
होय सफल रावण दहन, व्यर्थ अन्यथा पर्व।!
उस रावण का कीजिये, पहले काम तमाम !
वो जो भीतर बैठ कर,…करे कुकर्मी काम !!
रावण जैसों का अगर,हार गया अभिमान !
करना तेरा व्यर्थ है,…फिर तो मित्र गुमान! !
रमेश शर्मा