पटकथा
कोई आता है
कोई जाता है
कोई अनजान है
किसी को जानना है
कोई ईधर की ऊधर
अधर पर आई बात,
कहने में संकोच करता है,
कोई महत्वाकांक्षी व्यक्ति,
मिटाने की कोशिश में,
लिखता है पट कथाएं,
अतीत को नोचता है,
उन्हीं को *धोकता (पूजता) है ,
उलझन में उलझे रहता है,
अपनी नाकामियों से छुपते छुपाते,
नफरत करता है,
दो धड़े इजाद कर लेता है,
एक धड़ा पक्ष में
दूसरा भले जाये भाड़ में,
नहीं चाहिए साथ किसी का,
तंत्र में बेईमान खोजता है,
ऐसे ऐसे इतिहास के ब्यौरे देता है,
उससे ऊपर न देश है,
न तंत्र है, उसके मुख के वचन मंत्र है,
खुद के बचाव में ..
तख्तों ताज की शान में
झण्डा आन बान शान के दाम तक लगा देता है,
जनता कुछ समझ पाती,
उससे पहले,
वामपंथियों की बाट लगाता है,
पालतू कुत्तों को छोड़ देता है,
नोचने की दहशत,
सब कुछ नाम अपने रखता है,
बुरे है कितने लोग,
इन्हें विकास देश का खलता है,
कैद है गर्भ में बीज ज्वाला के,
विज्ञान है तो सृजन संभव है,
धर्म के नाम पर अंधे धंधे है ,
जाग जाओ समय रहते,
जान है तो जहान् है,
करता बंधे क्यों व्यर्थ अभिमान है,
सब कुछ तेरा है,
ये प्रकृति, ये संगति, विकृति, संवाद,