पचास रुपए का रावण
वो दशहरे का ही दिन था, मैं बाल कटवाने नाई की दुकान पर गया हुआ था। भीड़ बहुत थी सो बाहर पड़ी मेज़ पर ही बैठ गया। तभी पांच छह बच्चों का झुंड बगल वाली दुकान के सामने आकर रुकता है। सभी साईकिल से थे। किसी बढ़ई की दुकान थी। दुकान के बाहर तखत, सीढ़ी, बांस , और छः सात छोटे बड़े रावण रखे हुए थे। दुकानदार और उसकी पत्नी एक नया रावण बना रही थी। एक चार छह महीने का बच्चा बगल में पड़ी खटिया में सो रहा था। उसी खटिया में एक दस बारह साल की लड़की बैठे कुछ पढ़ रही थी। तभी उनमें से एक लड़का बोला, ‘रावण चाहिए’ । बढ़ई की पत्नी का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा । शायद उनका अभी एक भी रावण नही बिका था। वह बोली,’ कौन सा चाहिए’ । सब लड़के रावण देखने लगे। कोई कहता ये रावण अच्छा हैं तो कोई कहता वो रावण अच्छा है उसी को लेंगे । लड़को ने बढ़ई से उनके दाम पूछे। अलग अलग रावण के उनके आकार के हिसाब से अलग अलग दाम थे। कोई डेढ़ सौ का था तो कोई ढाई सौ का था । सबसे बड़ा रावण पाच सौं का था। तब उनमें से किसी ने कहा, ‘ पचास रुपए का दोगे? ‘ बढ़ई बाला, ‘ पचास रुपए का कौन सा रावण मिलता है?’ लड़के बोले, ‘ हमको पचास रुपए में ही चाहिए ‘ । बढ़ई बोला मेरे पास पचास रुपए का कोई रावण नहीं है, बगल में दूसरी दुकान है वहाँ पता कर लो। लड़के जाने लगे । तभी उसकी पत्नी बोली, ‘ सुनो, जाओ नही ये डेढ़ सौ वाले के तुम कम से कम सौ ही रुपए दे दो’ । उनमें से एक लड़का बोला , ‘ हमारे पास केवल पचास रुपए ही है, उतने ही मे दे दो । ‘ वह धीमी आवाज में बोला। पत्नी ने अपने पती की तरफ देखा। उसने आँखों के इशारो से उसे मना कर दिया। वह बोली, ‘ बच्चो हमारे पास पचास रुपए का कोई रावण नहीं है। लड़को का झुंड आगे चला गया। वह दोनो फिर से नया रावण बनाने मे लग गये। थोड़ी देर बाद वही सब लड़के अपनी साईकिल पर एक रावण को रखकर उसी रास्ते से निकले । वह रावण आकार मे बहुत ही छोटा था। बांस की पतली फर्चियो से बना वह रावण उन लड़को के लिए खुशियो का भण्डार था। वह सब इतने खुश थे मानो अयोध्या का सारा राज पाठ उन्ही को मिल गया हो। वह चिल्लाते हुए जा रहे थे , ‘ आज हम भी रावण जलाएंगे! , आज हम भी रावण जलाएंगे! ‘ यह सब बढ़ई व उसकी पत्नी देख रही थी। वह बोली, ‘ आज हमारा कोई रावण बिकेगा या नही? बहुत दिनों से हमारा कोई सामान नही बिका है , त्यौहार सर पर है और घर मे खाने के नाम पर एक दाना भी नही हैं आज । आखिर तुमने पचास रुपए मे रावण को बेचने क्यो नही दिया? कुछ न होता तो सुबह का चाय पानी ही हो जाता ‘ । बढ़ई बोला , ‘ तुम जानती है वह रावण बड़ा था और बास की मोटी फर्चियों से बना था और अगर भगवान चाहेगा तो शाम तक कुछ न कुछ बिक ही जावेगा । ‘ मै बैठे-बैठे सोच रहा था कि आखिर रावण के भी क्या दिन आ गए है, जिस रावण की सोना की लंका थी वह आज पचास रुपए मे बिक रहा है । बढई की पत्नी उन बच्चो के झुंड को दूर तक टकटकी बांधे देख रही थी। उसके मुहँ पे हल्की सी मुस्कान थी। शायद वो उस खुशी की कल्पना कर रही थी जो उन बच्चो को मिली होगी, पर उसे न मिली । शायद वो ये सोचकर हंस रही थी नी चलो मेरा दशहरा तो नही बन सका, कम से कम इन बच्चो का ही दशहरा बन जाए। इतने में ही उसका खटिया पर सोया बच्चा रोने लगा वह उसे चुप करा ही रही थी कि इतने मे मेरा नंबर आ गया और मै बाल कटवाने दुकान के अंदर चला गया………… ।