पक्षी
०१
पर होते जिस जंतु के, छुयें सदा आकास।
रख मत इनकों कैद में , कैदी रहे उदास।।०१
०२
हंसा में गुण होत है , कहे प्रताप कबीर।
दूध-दूध को पी गया , पृथक करे वो नीर।। ०२
०३
जिसका नीला कंठ है , दिखते सुंदर पंख।
म्याव-म्याव सुर आ रहा , बजता जैसे शंख।। ०३
०४
वाणी जिसकी मृदुल है, कृष्णा जैसा रंग।
ऋतु वसंत औ’ वो स्वयं ,रहते दोनों संग।। ०४।।
:- प्रताप