पकौड़े
प्रत्येक शनिवार के दिन शाम को पंत जी की मेस बंद रहा करती थी अतः उस शाम रात्रि का भोजन कहीं बाहर करना मजबूरी होती थी । एक बार किसी शनिवार की रात को उन्होंने अपने करीबी मित्रों से सब के फायदे की एक रोचक सूचना साझा की और उन्हें बताया कि किस तरह आज शाम को वे उस शहर के किसी ढाबे में गए , वहां उन्होंने मीट और चावल का ऑर्डर दिया और ₹5 के बदले में उस जगह पर उन्हें ढेर सारा गोश्त और चावल खाने को मिला । इतना सारा कि पेट भर गया और वह भी सिर्फ ₹5 में । उनकी बात को कुछ मित्रों ने सुना कुछ ने अनसुना कर दिया पर उनमें से एक बोला
‘ साले बड़े का रहा होगा ! ‘
फिर इस घटना को दिन , महीने , साल गुजर गए जब उनका पढ़ाई का अंतिम वर्ष चल रहा था तब तक उनके सम्बन्धों की प्रगाढ़ता अपनी सहपाठिनी एवम उनकी भावी पत्नी श्रीमती पन्त जी से हो चुकी थी । उन्हीं दिनों एक बार वे लोग उस शहर में स्थित एक विशाल कूड़े के अंबार और उससे बड़े तालाब के सामने स्थित एक सिनेमा हॉल में पिक्चर देखने साथ साथ गए । पिक्चर कोई खास नहीं थी मध्यांतर तक पिक्चर देखने के बाद वे लोग बाहर आए और सड़क पार कर सिनेमा हॉल के सामने स्थित एक खोखे वाली दुुकान में एक दंपत्ति जो स्टोव की आंच पर एक छोटी कढ़ाई में पकोड़े तल रहे थे उनसे कुछ पैसे देकर पकौड़े लिए जोकि उस महिला ने एक कागज में लपेट कर दे दिए । उन दिनों पिक्चर हॉल में बाहर से खाने की वस्तुओं मूंगफली इत्यादि ले जाना मना हुआ करता था अतः वे लोग कागज में लिपटे हुए इन पकौड़ों को छुपा कर पिक्चर हॉल के अंदर लाकर अपनी सीट पर बैठकर खाने लगे । खाते समय पहले ही कौर से उन्हें वह पकौड़े बहुत ही स्वादिष्ट लगे पर यह नहीं समझ में आ रहा था यह पकोड़े किस चीज से बने हैं मिस्टर पंत जी का विचार था यह पकौड़े मछली के भी हो सकते हैं और मिस पन्त जी का ख्याल था कि यह पकोड़े पनीर के हैं , दोनों ही परिस्थितियों में क्योंकि पकौड़े बहुत स्वादिष्ट थे वे दोनों उन्हें खाते रहे और अपने अपने मन के भीतर उठते अंतर्द्वंद से संघर्ष करते रहे । उन्हें लगा शायद आज उन्होंने किसी गरीब पकोड़े वाले दंपति को धोखा दे दिया और पनीर के पकोड़े बहुत सस्ते दामों में उससे खरीद लिए । मिस्टर पंत को यह भी याद आ रहा था कि किस प्रकार कई वर्ष पहले एक बार वे ₹5 में वे कुछ ‘ बड़ा ‘ खा कर आए थे !
इन्हीं सब बातों को सोचते विचारते हुए पिक्चर समाप्त होने के बाद हॉल से बाहर निकल कर उन्होंने निर्णय किया कि सामने खोखे पर स्थित पकौड़े वाली दुकान पर जाकर पूछेंगे यह पकौड़े किस चीज़ के बने हैं । उन्होंने सोचा यदि यह पकोड़े पनीर के बने हुए होंगे तो वे उस गरीब पकौड़े वाले दंपति का नुकसान नहीं होने देंगे और उन्हें उन पकौड़ों का उचित मूल्य दे देंगे । वैसे भी कबिरा आप ठगाइये और न ठगिये कोय , आपके ठगे सुख ऊपजे और ठगे दुख होय ।
इसी बात को विचार करते हुए दुविधा में ग्रस्त वे दोनों सिनेमा समाप्त होने के पश्चात सिनेमा हाल से बाहर आए और सड़क पार कर उस खोखे वाली के पास पहुंचे और उन्होंने उस महिला से पूछा
‘ तुम यह पकौड़े किस चीज के बना रही हो ?’
प्रत्योत्तर में उस महिला ने पास में ही रक्खी एक परात में रखे कच्चे केले के लंबे कटे टुकड़ों और एक पतीली में घुले बेसन को दिखा कर कहा
इनसे ।
फिर उन्हीं के सामने एक कच्चे केले का चपटा लम्बाई में कटा टुकड़ा उठाकर बेसन में लपेटकर कढ़ाई में डाल कर बोली –
‘ ऐसे ‘
आज जब कि उस घटना को बीते कई दशक बीत चुके हैं डॉ पन्त जी सुबह कोरोना काल में रसोई के काम में पत्नी का हाथ बंटाने के लिए जब सब्जी बनाने के लिए कच्चे केले को हाथ में ले कर काट रहे थे तो अचानक अपनी पुरानी स्मृतियों में खोए खोए उन कच्चे केलों को सब्जी के लिए गोल गोल काटने के बजाए लंबाई में पतले टुकड़ों में काटने लगे । उनकी इस हरकत को देखकर श्रीमती पन्त जी उनका आशय समझ गयीं और त्योरियां चढ़ा कर पंत जी की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखते हुए कहा
यह क्या कर रहे हो ?अगर मैं यह तल कर बना दूं तो क्या खा सकोगे ? इन्हें खाये गा कौन?
पंत जी धर्मपत्नी की बात का आशय समझ चुके थे और कुछ देर पश्चात वो पुरानी स्मृतियों में खोए सिर झुका कर एकाग्रचित्त हो कर उन कच्चे केलों को सब्ज़ी के लिये गोल गोल स्वरुप में काटने में तल्लीन हो गये ।