पका हुआ हर आम
दिखने मे सुंदर रहे…….. लगे मुनासिब दाम !
सदा स्वार्थ की शाख पर,पका हुआ हर आम !!
अच्छाई उसकी सभी,…हो जाती गुमनाम !
बदनामी का कर दिया,एक बार जो काम !!
आएगा इस बार जब,,सावन मे प्राणेश !
मैं जाने दूंगी नहीं, …वापस उसे विदेश !!
रमेश शर्मा