#पंछी जहाज का
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★ #पंछी जहाज का ★
रविरश्मियों में मेरा
इंदु नहा रहा है
हंसते हैं कण स्वेद के
श्रम गुनगुना रहा है
पवन झकोरों भरी
भुवन की थाली
लहराए है संग-संग
गेहूं की बाली
भाग्य के हाथों में
मनुज खिलौना है
तन अपना चाँदी है
मन अपना सोना है
दाल-भात घर में
उत्सव मना रहा है
हंसते हैं कण स्वेद के . . .
नंदी है खोया रे
गइया की बारी है
पूतों से हारी देखो
धरती दुखियारी है
जगती में हर पल रहता
सुख-दु:ख का मेला रे
जीते न कोई साथी
कैसा यह खेला रे
हलधर अकेला
हल चला रहा है
हंसते हैं कण स्वेद के . . .
कोई भी राजा हो
कोई सिपाही
सूरज और चंदा दोनों
अनथक हैं राही
अंखियों के झूले से
तारा इक टूटा
संगी पुराने छूटे
हाथ ज्यों टूटा
कल-यंत्र हुआ मानव
कल गंवा रहा है
हंसते हैं कण स्वेद के . . .
पानी न पानी रहा
हुआ कुछ और है
रात चमकीली नहीं
यह कष्टों की भोर है
सूझे न दूजा रस्ता
जहाँ वो जाए रे
पंछी जहाज का
फिर लौट आए रे
लटकने से कुछ न होगा
जुगत लगा रहा है
हंसते हैं कण स्वेद के . . .
धड़के हैं मेरी छतियाँ
अंखियाँ सकुचाए हैं
नए-नए राजा सब
मन को भरमाए हैं
कोई भी हीरा होवे
कोई नगीना
हमको तो साथी तेरी
बांहों में जीना
देवलोक से कोई जैसे
पास आ रहा है
हंसते हैं कण स्वेद के . . .
आकाश से ऊंचा है
सागर से गहरा
निश्चय अटल उस पर
ध्रुव आ के ठहरा
रोना-कलपना नहीं
हाथ बंटाना है
मिलजुल कर साथी हमें
उस पार जाना है
अमावस की रात काली
चित्रभानु जगमगा रहा है
हंसते हैं कण स्वेद के . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२