पंचशील व्यवहार में
दोहे
पंचशील व्यवहार में, श्रमण हो आचार।
समता ममता चेतना, सुखों का आधार।।
पंचशील से ही मिलें, मुक्ती के सब राह।
शीलवान बन कीजिए, भेदभाव का दाह।।
राजे राजकुमार भी, छोड़ गए निज राज।
पंचशील अपना लिया, किए धम्म के काज।।
चोरी जारी मत करो, प्राणी हिंसा पाप।
झूठ बोलना छोड़कर, नशे छोड़िए आप।।
रक्त सनी थी यह धरा, होते थे नित युद्ध।
अमन – चैन का राह ले, आए गोतम बुद्ध।।
शीलवान बन जो गया, टूटे सब अवरोध।
कर्मकांड छूटे सभी, हुआ सत्य का बोध।।
सिल्ला भी है चल रहा, पकड़ धम्म की राह।
मार्ग धम्म का सुगम जो, कर दे बेपरवाह।।
-विनोद सिल्ला