न जाने क्या मुझे सूझी, ये कैसे यार कर बैठै।
मुक्तक
1222………1222……..1222…….1222
न जाने क्या मुझे सूझी, ये कैसे यार कर बैठै।
कि नफरत थी मुझे जिससे, उसी से प्यार कर बैठे।
जिसे कांटे के जैसा, जिंदगी से दूर फेंका था,
ये क्या मुझको हुआ उसको, गले का हार कर बैठे।
……..✍️सत्य कुमार प्रेमी
स्वरचित एवं मौलिक