न जागने की जिद भी अच्छी है हुजूर, मोल आखिर कौन लेगा राह की द
न जागने की जिद भी अच्छी है हुजूर, मोल आखिर कौन लेगा राह की दुश्वारियां।
कट रही है ठाट से हाथ फैलाने से गर, जागकर मैं क्यूं खरीदूं सैंकड़ों बीमारियां।।
न जागने की जिद भी अच्छी है हुजूर, मोल आखिर कौन लेगा राह की दुश्वारियां।
कट रही है ठाट से हाथ फैलाने से गर, जागकर मैं क्यूं खरीदूं सैंकड़ों बीमारियां।।