न कोई जगत से कलाकार जाता
रहे ना रहे जग से रहता है नाता,
न कोई जगत से कलाकार जाता।
रहे स्वार्थ में, लाख दौलत कमाये,
कि ऐसे मनुज को जहाँ भूल जाये।
मगर जो खुशी दे कला से सभी को,
वो सदियों सदी तक सदा याद आये।
न मरता कभी यूँ दिलों में समाता।
न कोई जगत से कलाकार जाता।।
भले उसका जीवन हो खुशियों से खाली,
मगर ज्योति देता है बन कर दिवाली।
यही उसकी चाहत है जनता से यारों,
मिले वाहवाही मिले खूब ताली।
यही उसकी पूँजी यही वो कमाता।
न कोई जगत से कलाकार जाता।।
गढ़े दिव्य कविता या मूरत बनाये,
कभी चित्र खींचे कभी गीत गाये।
कि वादन व नर्तन या अभिनय भी कर के,
वो अपनी कला से सभी को लुभाये।
अगर मन व्यथित हो तो मरहम लगाता।
न कोई जगत से कलाकार जाता।।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 06/05/2022