न और ना प्रयोग और अंतर
कई बार मित्र पूँछते है कि “न और ना ” में अंतर क्या है ?और (डिक्सनरी ) बृहृत हिंदी शब्द कोष या हिंदी शब्द कोष खोलकर उनमें एक ही अर्थ देखते है ,तब प्रश्न करने लगते है कि जब डिक्सनरी में एक ही अर्थ है तब हिंदी छंद काव्य में ना का निषेध क्यो है | तब यहाँ यह समझना आवश्यक है कि डिक्सनरी प्रचलित शब्दों का संग्रह है ,काव्य विधान नहीं है , काव्य का अपना एक शिल्प विधान है , जो स्वराधित भी है
न — न किसी भी उत्पन्न कथन को #प्रारंभ से ही मना/ इंकार करने देने की प्रक्रिया के लिए होता है
उदाहरण से समझिए –
कथन – वहाँ पचास लोग है ? उत्तर – न ( कोई भी नही है ,अर्थात एक भी नहीं है ) उच्चारण स्वर भी हल्का होगा व विनम्रता पूर्वक निषेध होगा , न हिंदी भाषा में मान्य है , उर्दू में कम ही प्रयोग होता है , न निषेध क्रिया/भाव का भी संकेत भी देता है
जैसे – मांगी नाव , न केवट आना
जैसे-तुम न करोगे तो वह करेगा।
और
ना — ना का प्रयोग किसी भी उत्पन्न कथन को सिर्फ नकारा करने के लिए होता है |
कथन—वहाँ पचास लोग है
उत्तर – ना
( आशय – हो सकता है चालीस हो , तीस हो , हो , कितने भी हों या नहीं हों , पर पचास नहीं है )
ना का प्रयोग उर्दू फारसी में बहुत मिलता है , ना का उपसर्ग लगाकर विलोम बनाने में बहुत होता है- जैसे – नाफरमानियाँ, नाइंसाफी ,नादानियाँ , नाउम्मीद , नासमझ , नाकाबिल
पर – यहाँ ना की जगह न का प्रयोग नहीं हो सकता है जैसे नउम्मीद , नसमझ – इत्यादि शब्द नहीं बनते हैं .
हिंदी और संस्कृत में ना की जगह निषेधात्मक उपसर्ग हेतु –
अ – का प्रयोग होता है –
जैसे – न (नहीं) धर्म = अधर्म. ( नाधर्म नहीं हो सकता है )
न (नहीं) मानवीय = अमानवीय ( नामानवीय नहीं हो सकता है )
न (नहीं) ज्ञान = अज्ञान. ,( नाज्ञान नहीं हो सकता है )
ऊपर सभी तत्सम शब्द हैं , पर तद्भव में भी ऐसा प्रयोग मिलता है , जैसे ~न ( नहीं ) पढ़ = अनपढ़
हिंदी में ”ना’ का प्रयोग क्रियाओं के निर्माण में ही किया जाता है।
धातु( क्रिया का मूल रूप) में ‘ना’ जोड़ने पर क्रियाओं का निर्माण होता है।
जैसे-लिख+ना=लिखना। पढ+ना =पढ़ना , सुन +ना सुनना ,
तैर +ना तैरना , इसमें लिख पढ सुन तैर धातु है , व ना क्रिया है
इसी तरह
एक फिल्मी गाना से भी समझें
कहो ना प्यार है -( अर्थ – कहने की क्रिया करे कि प्यार है ) हिंदी में यहाँ ना क्रिया अनुरोध है
यदि ना का अर्थ( मत / नहीं) लगाया जाए , तब तो अर्थ और आशय ही बदल जाएगा | कि प्यार नहीं है
हिंदी में ” न” का प्रयोग निषेध भाव में मिलता है व प्रयोग होता है उर्दू में ना का प्रयोग उचित माना जाता है , चूकिं हिंदुस्तान में दोनों भाषाओं में साहित्य बंधु लिखते है , इसीलिए न और ना में फर्क नहीं मानते है , पर हमारा कहना यह है कि दोनों भाषाओँ में लिखें , पर एक दूसरे की खिचड़ी मत करें
उर्दू में – खुदा ना-ख़ास्ता √ खुदा न -खास्ता ×
हिंदी में – आप ऐसा न करे √ आप ऐसा ना करे
??हास्य अंतर – बोलकर देखिए
कथन – मेरे लिए काम करोगें ?
न – हल्का स्वर ( झगड़े की कम सम्भावना है , मना करने के वाबजूद भी विनम्रता झलक रही है )
ना – जोर से ही बोला जाएगा (झगड़े की पूरी सम्भावना, कठोरता झलक रही है )
अब आपको ( न/ ना ) कहाँ कैसा प्रयोग करना है , आप स्वतंत्र है , पर हिंदी छंदों में निषेध क्रिया / आशय के लिए (न) का प्रयोग ही मान्य है , अब कुछ मित्र हिंदी छंदों में मात्रा घटाने बढ़ाने के लिए न को ना – नहीं को नहिं , और को अरु , लिखकर, मात्रा घटा बढ़ाकर छंद को पूरा करते है , पर ऐसा करने पर छंद का सौन्दर्य चला जाता है |
यह आलेख मैने अपने अध्ययन कालीन नोट्स डायरी से तैयार किया है |, जो हिंदी छंदकारो के लिए उपयोगी है
सुभाष सिंघई जतारा जिला टीकमगढ़ म० प्र०