नज़्म
मेरे चलने से वो चलती है,
ठहर जाती है रुकने पर,
सांसें नहीं वो आये जाये.
परछाई है अपनी माँ की,
भविष्य निधि एक दूजे नू
.
तेरी हर बात नासाज निकली
न काला धन,न भ्रष्टाचार रुका,
तेरे अपने चाहने वाले वाह वाही,
करते रहे, और तू होश खो बैठा.
हंस महेन्द्र सिंह