न्याय के मंदिर में!
न्याय के मंदिर में, हो न जाए अन्याय,
सीडी दर सीडी बनी है, पाने को वहां न्याय,
न्याय के मंदिर में जब,किसी को लगता है ये,
मिल नहीं पाया है उसको,वहां से कोई न्याय,
तो हैं विकल्प उसके लिए,करने को अपीलीय वाद,
सुनी जाएगी उसकी, वहां पर फरियाद,
फिर भी यदि उसकी अर्जी पर नहीं हो पाए सम्यक चर्चा,
हो जाए पुनः उसका खारिज पर्चा,
तब भी वह जा सकता है, सबसे बड़ी अदालत में,
सर्वोच्च न्यायालय के परिसर में,
और यहाँ पर होता है सम्यक वाद परिवाद,
फिर लिया जाता है निर्णय, करके सोच विचार,!
पर यहाँ तक पहुंचने की,क्या जुटा पाता है हिम्मत आमजन,
वह तो निचली अदालत में ही हो जाता है इतना तंग,
बच पाती नहीं और कोई उमंग,
अंगीकार कर लेता है वह हर तरह का निर्णय,
और कोसते हुए अपने भाग्य को,कर लेता है समर्पण,
ऊपरी अदालत में जाने की रहती नहीं कोई व्यवस्था,
थकहार कर वह स्वीकार लेता है अपनी अवस्था,
होते हैं कितने ही ऐसे अभागे,जो समुचित न्याय न पा सके,
रहकर काल कोठरियों में, जीवन अपना समा गये,
कुछ आए भी बाहर अपने जीवन काल में,
रह गये होकर अप्रासंगिक, अपने ही समाज और परिवार में,
और हैं कुछ ऐसे भी, खेलते हैं इस व्यवस्था से,
करते हैं जोड तोड से लेकर गुं डई और खरीद फरोख्त,
गवाहों को डराना धमकाना, लोभ लालच में फंसाना,
केहिविधि हो हर हालात में न्याय को अपने पाले में लाना,
ऐसे में है कौन जो पिडित का दे साथ,
पकड़ कर उसका हाथ,
कहे चल मै हूं तेरे साथ,
जो समझे उसकी पिडा ,
और समझे उसकी बात,
बस इतना सा प्यार पाकर,
वह निढाल हो जाएगा,
जो हुआ था उसके संग अन्याय,
वह उसको भी भूल जाएगा,
न्याय सिर्फ अदालत ही नहीं करती,
आसपास का समाज भी करता है,
दिन दुखियों के आंसुओ को पोंछ ता है!