न्याय- एक स्पष्टीकरण
न्याय ।
न्याय अर्थात रिश्ते-नाते, मोह-माया, दोस्ती, प्रेम, स्नेह, इत्यादि से ऊपर जा कर, सब कुछ त्याग कर सत्यता और प्रमाण ( प्रमाण वह जो कि प्रमाणित हो) के आधार पर गुण-दोष का आंकलन कर दोषी तथा निर्दोष घोषित करते हुए अभियुक्त को दोषी सिद्ध करते हुए उचित दण्ड देना तथा निर्दोष सिद्ध होते ही अभियुक्त (जो कि निर्दोष सिद्ध हो चुका है) को दोषमुक्त घोषित कर सम्मानपूर्वक विदा करना जिसके वश की बात है वही न्यायाधीश है।
आइए अब थोड़ी सी चर्चा न्यायाधीश के विषय पर करते हैं।
भारतीय या किसी भी न्याय-व्यवस्था की दृष्टिकोण से न्यायाधीश का अर्थ सीमित है और न्यायाधीश से उच्च पद न्यायमूर्ति का है।
न्याय-व्यवस्था से पृथक हो कर मैं ‘न्यायाधीश’ शब्द की व्याख्या मेरी व्यक्तिगत जानकारी के अनुसार करना चाहता हूँ ।
न्यायाधीश वही है जिसका कर्तव्य न्याय की स्वयं की परिभाषा (उपरोक्त परिभाषा, जो मेरी व्यक्तिगत जानकारी तथा मेरे अनुभव, जो कि अभी कम है और कम ही नहीं बहुत ही कम है तथा सदैव कम ही रह जाएगी) बनाने का होता है और परिभाषा भी वह, जो असीमित हो और यदि असीमित न हो, तो सीमित तो कदापि न हो।
न्यायाधीश का वास्तविक अर्थ, विधि द्वारा स्थापित अर्थ से पृथक, यह है कि जो न्याय (असीमित) करने हेतु पूर्णतः समर्पित हो और उसका जीवन मात्र न्याय करने के लिए ही हो और मरणोपरांत भी उस न्यायाधीश को न्यायाधीश कह कर ही जग (यहाँ जग का अर्थ निर्भर करता है कि उस न्यायाधीश विशेष को न्यायाधीश के रूप में कितने लोग जानते हैं) सम्बोधित करे और यह ही उस विशेष व्यक्ति का जग है और थोड़ा सा आगे बढ़े तो यह कहना अनुचित नहीं होगा कि जो न्यायाधीश है, उसकी उपस्थिति ही न्याय है।
न्यायाधीश जहाँ उपस्थित हो जाए, वहीं न्याय है और जिसके उपस्थित होने मात्र का अर्थ न्याय है, जिसकी उपस्थिति मात्र ही न्याय है वह ही तो न्यायमूर्ति है।
और न्यायमूर्ति हम सभी में व्याप्त है।
विधि द्वारा स्थापित परिभाषाएँ , चाहे वह परिभाषा न्यायाधीश की हो या न्यायमूर्ति की हो या चाहे वह परिभाषा स्वयं न्याय की हो, पुस्तकों और इन्टरनेट तथा और भी इन प्रकार के माध्यमों व संसाधनों से मिल सकती है किंतु न्याय किसी किताबी परिभाषा का भूखा नहीं है, इसीलिए जब मैं बैठे बैठे न्याय पर विचार कर रहा हूँ (कर रहा था नहीं कर रहा हूँ, यह ध्यान केंद्रित करने का विषय है), तो मेरे विचार में आया कि एक लेख के माध्यम से अपने विचार सभी से साझा करूँ।
इस शीर्षक पर अधिक कुछ कहने के लिए मेरे पास नहीं है और जितना लिख दिया उतना ही अभी तक समझ पाया हूँ और सदैव सभी की टिप्पणियों तथा सभी के सलाहों का सम्मान से स्वागत करने के लिए आतुर हूँ।
मेरा यह लेख न्याय को समर्पित है।
जय हिंद
जय मेधा
जय मेधावी भारत
©® सन्दर्भ मिश्र पुत्र श्री नरेन्द्र मिश्र,
ग्राम दफ्फलपुर,
पोस्ट व थाना रोहनियाँ,
जनपद वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत-221108