“नौ मुक्तक” : ( पतंग )
“नौ मुक्तक” : ( पतंग )
#############
??”पतंग”??
(१)
सुन ”पतंग” का नाम, उमड़ते दिल में अरमान।
हर जन का मन विचरे कि वो छू ले आसमान।
परस्पर सहयोग और विश्वास की डोर के संग,
पतंग सा उड़ चले, चीरकर हर इक व्यवधान।।
(२)
बचपन में खुद से ही पतंग बना लेता था ।
पूंछ में उसके इक पंख चिपका देता था ।
उड़ती थी ऊंची तो लगती चिड़िया जैसी ,
डोर जिसकी पास ही,मन बहला देता था।।
(३)
पतंग का हूॅं मैं बचपन से ही बहुत दीवाना ।
जुगाड़ करके जो बच जाते थे दो-चार आना।
उस पैसे से पतंग के सामान ले आता था ,
बनाकर आरंभ हो जाता था पतंग उड़ाना ।।
(४)
बचपन में पतंग उड़ाने में मज़ा बहुत आता था।
ऊंची चली जाए तो आनंद में मग्न हो जाता था।
उड़ती पतंग की कमान होती थी अपने ही पास,
पेंच लड़ाने में कट जाती तो बहुत पछताता था।।
(५)
जब कभी भी कट जाती थी मेरी पतंग ।
तत्क्षण घट जाती थी मेरे मन की उमंग।
विकल हो दौड़ता “कटी पतंग” के वास्ते ,
खेत-खलिहान होकर, गिरते-पड़ते मलंग।।
(६)
मेरे मन का पतंग इतना ऊंचा है उड़ रहा ।
ऊंची उड़ान भरके हवा से बातें ये कर रहा ।
स्वच्छंद विचरण में इतनी बाधाएं हैं आती ,
लौट के फिर वो इस धरा पे ही तो ठहर रहा।।
(७)
पतंग जैसी सबकी ज़िंदगी की भी उड़ान हो।
ये ज़िंदगी अपनी भी कदापि नहीं वीरान हो।
भगवान से हम सदा, ये विनती करते रहते….
हर लम्हे जी लें , सबके चेहरे पे मुस्कान हो।।
(८)
गुजरात में मकर संक्रांति पर मनती पतंगबाजी ।
राजस्थान में भी इसी दिवस पतंगें उड़ाई जाती ।
जाने माने लोग ‘पतंग महोत्सव’ में शामिल होते ,
कई शहरों में स्वतंत्रता दिवस पे सबको ये भाती।।
(९)
आज युवा , बुजुर्ग पतंगबाजी में हाथ आजमा रहे ।
इस मनोरंजक खेल में बच्चों का साथ वे निभा रहे।
एक अलग ही आनंद है, इस खूबसूरत से खेल में ,
उछलते, दौड़ लगाते , इसमें तनिक नहीं शरमा रहे।।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
स्वरचित ( मौलिक )
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक :- 21/01/2022.
*****************?*******************