नौ फेरे नौ वचन
लघुकथा
नौ फेरे, नौ वचन
“यजमान, अब सगाई की रस्म पूरी हो गई है। आप लोग खाना-पीना करिए। मुझे इजाजत दीजिए। आज ही मुझे एक दूसरी जगह पूजा भी संपन्न करनी है।” पंडित जी अपना झोला-डंडा उठाते हुए बोले।
“ठीक है पंडित जी, बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार आपका। इनकी शादी भी आपको ही संपन्न करनी है। भावी वर-वधु की कुंडलियाँ तो आपके पास हैं ही। यथाशीघ्र एक बढ़िया-सा मुहूर्त देखकर बताइएगा।” भावी वर के पिता ने हाथ जोड़कर कहा।
“देखिए यजमान, शादी संपन्न कराने के लिए मेरी कुछ शर्तें रहती हैं। यदि यजमान शर्त मानने को तैयार होते हैं, तभी मैं शादी कराने आता हूँ।” पंडित जी ने कहा।
“शर्तें ? कैसी शर्तें ?” भावी वधु की माँ ने आश्चर्य से पूछा।
“जी, मेरी शर्त ये है कि भावी वर-वधु सात फेरे, सात वचन नहीं, बल्कि नौ फेरे और नौ वचन लेंगे। बोलिए, यदि मंजूर हो, तो मैं तैयार हूँ।” पंडित जी ने पूछा।
“नौ फेरे, नौ वचन ? ये क्या माजरा है ?” भावी वधु ने भावी वर की ओर देखते हुए आश्चर्य से पूछा।
“देखो बिटिया, समय के साथ हमें भी बदलना होगा। यही सोचकर मैं भावी वर-वधु के नौ फेरे करवाता हूँ और उन्हें नौ वचन दिलाता हूँ।” पंडित जी बोले।
“ये अतिरिक्त दो वचन कौन-से हैं पंडित जी, जो हमने नहीं लिए ?” वधु के पिताजी ने हाथ जोड़कर पूछा।
“आठवाँ वचन यह कि हम कभी भ्रूण की लिंग जाँच नहीं कराएँगे न ही भ्रूणहत्या करेंगे और नौंवा वचन यह कि हम कभी अपने वृद्ध माता-पिता, सास-ससुर से पृथकवास नहीं करेंगे, न ही उन्हें किसी वृद्धाश्रम में भेजने का विचार मन में लाएँगे। बोलिए, क्या आप लोगों को मेरी ये शर्तें मंजूर हैं ?” पंडित जी ने पूछा।
दोनों माता-पिता ने अपने बच्चों की ओर देखा। भावी वर-वधु की आँखें नम थीं। उन्होंने अपने-अपने माता-पिता और सास-ससुर की ओर देखा। फिर पंडित जी से कहा, “पंडित जी, हमें आपकी शर्तें मंजूर है।”
सबने पंडित जी को खुशी-खुशी विदा किया।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़