नौकरी हटवा दो
नौकरी हटवा दो
विश्राम गृह में चहल-पहल थी। मंत्री जी आम व खास लोगों से मिल रहे थे।
कोई नौकरी के लिए शिफारिश करवा रहा था। कोई थाने में फोन करवा कर किसी को पकड़वा रहा था तो कोई किसी को छुड़वा रहा था।
सभी लोग स्वार्थवश मंत्री की हाजरी भर रहे थे। मिलने वालों की भीड़ में से एक ग्रामीण खड़ा हुआ।
ग्रामीण कहने लगा, “मंत्री जी मेरे लड़के को नौकरी से हटा दो।”
मंत्री बोला, “मनफूल पहले तो उसे नौकरी लगवाने के लिए पीछ पड़ा रहा। अब हटवाने के लिए कह रहा है। क्या हुआ?”
मनफूल बोला, “जो आपने नौकरी लगवाया, वो मेरा इकलौता बेटा है। नौकरी लगते ही वह अपने बीवी-बच्चों को लेकर शहर जा बसा। वह आज मजे कर रहा। हम वही के वही अभावग्रस्त।”
जब वह बेरोजगार था, तब सही था। हमारी पूरी सेवा करता था। आदर-मान करता था। अब उसकी अपेक्षा कचोटती है।
मनफूल विश्राम गृह में सन्नाटा छा गया। अपनी बहू, अपने बेटे की शिफारिश करने आए व्यक्ति, मनफूल की बातें सुनकर सोचने को मजबूर हो गए।
-विनोद सिल्ला