नौंक-झोंक
ब्रजभाषा में घनाक्षरी
नौंक-झौंक
०००००००
(रसिया)
बच कित जावै है री नैन चौं झुकावै है री ,
काहे तू लजाबै है री , कारी नाय गोरी है ।
घुँघटा उघार नाय मानी दिंगे फार याय,
गालन गुलाल मलैं तेरै बरजोरी है ।।
नैनन में नैन डार काजर चुराय लिंगे,
हम हैं चिरौंटा तू चिरैया जैसी भोरी है ।
कौरी भर झकझोरैं पूरी तोय रँग बोरैं,
इतकूँ तौं आजा नैंक खेलैं हम होरी है ।। (१)
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गोरी-
००००
अटकै न हमते तू मटकै न इतनौ तू,
मत जानैं हमकूँ तू गूजरिया भोरी है ।
गुलचा दै गाल तेरे कारे ते करिंगी लाल ,
इतकूँ ना आ तू देख हाथन कमोरी है ।।
मार-मार लट्ठ तोय दिंगी रे सुजाय पूरौ ,
नाँदन में केसर रे हमनैहू घोरी है ।
बच कित जावैगौ तू भाज नाय पाबै आज,
भूल जाय कहबौ हुरंगा है कै होरी है ।।(२)
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रसिया-
०००००
नैनन ते मारैं तोय सैनन ते मारैं हम,
बैनन ते मारैं सरमाय मर जायगी ।
चुनरी पै चटकीलौ ऐसौ रंग डारैं सुनि,
नैंकहु न छूटै घिस-घिस हर जायगी ।।
घूँघट हटा कैं मुख चंद्र तौ दिखा दै नैंक ,
तेरौ कहा बिगरैगौ स्वाँत पर जायगी ।
थोरौ सौ तू रंग नैंक हमपैऊ डरवा लै,
होरी में तू अमृत सौ पीकै घर जायगी ।।(३)
०
गोरी-
००००
अमृत पिबायबे कूँ मेरौ भरतार भलौ ,
नैंकसौहू रंग नाय तोपै डरवाऊंगी ।
नाय खेलूँ होरी तोसौं लै-लै-लै सिगट्टा लै-लै ,
घूँघट तौ नैकहु ना अपनौ हटाऊंगी ।।
बाँध कै नजरिया च्यौं देखत है एकटक,
नैनन में नैन नाय नैंक इरझाऊंगी ।
होरी में रे रसिया चौं बाबरौ सौ डोल रह्यौ,
मैं हूँ ब्रजगोरी तेरे हाथ नाय आऊंगी ।।(४)
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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