नोटबन्दी का रोगी
नोटबंदी के पश्चात के दिन चल रहे थे लगभग सभी लोग अपनी अपनी क्षमता से कुछ अधिक ही धन अपने खातों में सही ढंग से जमा कर चुके थे या नए नोटों से बदल चुके थे ।
न्यूज़ चैनल पर लंबी लंबी लोगों की कतारें नोटों को परिवर्तित करने के लिए सुबह से शाम तक लाइन में लगी दिखलाई जातीं थीं एवं सुबह से शाम तक विरोधी दलों के नेता सरकार की असफलता, नगदी एवम नोटों का रोना अपने प्रिय टीवी चैनल पर रो रहे थे ।
ऐसे दिनों में एक एक दंपत्ति डॉ पन्त जी को अपने आपको दिखाने के लिए आए । वे नोट बन्दी के कारण उतपन्न संकट में अपनी असहाय परिस्थिति एवम एक थैला भर नोट प्रदर्शित करते हुए उनके सामने प्रस्तुत हुए और उन्होंने उनसे शिकायत करते हुए कहा
आपके यहां बाहर कैश काउंटर पर नकद रूप में यह पुराने नोट नहीं ले रहे हैं ।
पन्त जी ने उनसे कहा कि इन्हें सामने बैंक में जाकर बदल कर ले आइये ।
इस पर उन्होंने ने बताया कि उनके परिवार के कई सदस्य सुबह से शाम तक विभिन्न बैंकों में रूपये लेकर कतारों में खड़े हैं और एक बार बदल जाने पर फिर उसी लाइन में दुबारा खड़े हो जाते हैं । जब हमें दूसरों के नोट बदलने से कमाई हो रही है तो हम अपने नोट क्यों बदलें ? आप ही क्यों नहीं ले लेते ?
पन्त जी ने अधिक मात्रा में नोट देख कर उनसे कहा
‘ आप सीधे बैंक में जा कर जमा इन्हें जमा करा दें ।’
इस पर उन्होंने कहा कि अति निर्धन रूप से सरकार के पास हमारा नाम दर्ज है और अभी हाल ही में सरकार ने हमारा सात लाख का घर बनवाने के नाम से ऋण माफ किया है , इसके अलावा हमारे घर में जनधन खातों में भी पैसा एवम अन्य सुविधाएं सरकार द्वारा मिलती रहती हैं यदि हम इतने पैसे अपने बैंक के खाते में जमा कर देंगे तो हम गरीबी रेखा से ऊपर गिने जाने लगेंगे और हमें मिलने वाली सुविधाएं समाप्त हो जाएंगी ।
पर पन्त जी ने उनकी बात का ध्यान रखते हुए सोचा कि यदि मैंने इनसे ₹500 का नोट स्वीकार कर लिया तो घर जा कर पत्नी डांटे गी कि तुम फिर ले आये ₹ 500 का पुराना नोट और इसका स्पष्टीकरण देने में उन्हें दिक्कत होगी । अतः उन्हों ने सख्ती बरतते हुए वे पुराने नोट लेने से इनकार कर लिया ।
डॉ पन्त जी रोगी के उपचार में उसकी आर्थिक स्थिति एवं उसके रोग में लगने वाले खर्च को एक सापेक्षिक दृष्टि से देखते थे तथा इस डिजाइनर युग के ज़माने में जहां वस्त्र एवं फर्नीचर आज भी आपकी पसंद एवं रुचि को ध्यान में रखकर बनाकर दिए जाने की सुविधा प्राप्त हो वे एक डिजाइनर प्रिसक्रिप्शन देने में विश्वास करते थे ।
उनके इस डिज़ाइनर उपचार में रोग वही रहता था लेकिन उसकी लागत बदलती जाती थी जो उस रोगी के परिवार के अन्य सदस्यों की उसका इलाज कराने में उनकी रुचि तथा रोगी की अब इस संसार में कितनी जिम्मेदारियां निभाना रह गयीं हैं और वह अपने एवम अपने परिवार के लिए कमाई के लिए कितना मूल्यवान रह गया है या केवल एक लंगड़े घोड़े की तरह सब पर बोझ बना हुआ है पर निर्भर करती थी ।
वे लोग धनवान होते हुए सरकार को धोखा दे कर मुफ्त में प्राप्त सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए गरीबी का आवरण ओढ़े पड़े थे । उन दिनों ऐसे लोगों की कमी नहीं थी ।
डॉ पन्त जी के सख्त व्यवहार को देखते हुए वे लोग उनके अस्पताल से प्रस्थान कर गए ।इस घटना को कुछ माह गुजर गए नोटबंदी का हल्ला भी समाप्त हो गया ।
कई दिन बीतने के पश्चात वही दंपत्ति दोनों हाथों में बड़े-बड़े रेक्सीन बने कई थैले हाथों में लादकर डॉ पन्त जी के कक्ष में उनके कैश काउंटर पर से उनके परामर्श शुल्क का पर्चा बनवा कर अंदर आए और उन्होंने वे थैले कुर्सी पर बैठने के पश्चात अपनी कुर्सियों के बराबर में रख लिए और जब डॉ पन्त जी ने उनसे पूछा कि आपको क्या तकलीफ है
उस पर उन्होंने कहा
‘ हम आपके पास नोटबंदी के दिनों में भी दिखाने आए थे तब आपने हमको उन पुराने नोटों के बदले में नहीं देखा था आज हम फिर आपको दिखाने आए हैं । पहले आप हमारी इन रिपोर्टों को देखो फिर फैसला करो कि हमारी क्या दवा चलनी है ।’
डॉ पन्त जी ने देखा उन दोनों के हाथों में कारपोरेट जगत के एक प्रतिष्ठित अस्पताल के द्वारा की गई तमाम जांचों की रिपोर्ट्स से उनके थैले भरे थे । उन्होंने उन दोनों दम्पति की के एम आर आई , अल्ट्रासाउंड से ले कर उनकी लैब में होने वाले सभी सामान्य एवं असामान्य खून की जांचें इत्यादि कर डाली थीं ।
उन दंपतियों ने पन्त जी को बताया कि जब उनके यहां नोट नहीं चले फिर वे उक्त अस्पताल में गये जहां उन भले लोगों ने उन पुराने नोटों के पैसों के बदले में उनकी यह सभी जांचें भी कर दीं ।
यह सुनकर पन्त जी नेउनसे कहा कि
‘ जब तुमने वहां से अपनी इतनी जांचे कराई थी तो फिर इलाज भी वहीं से क्यों नहीं ले लेते ‘
इस पर वे बोले
‘मजबूरी है साहब , इलाज तो तुम्हारा ही फायदा करता है इसलिए अब हम तुम्हें दिखाने आए हैं । लेकिन हमें आपसे एक शिकायत रहेगी कि आपने जिंदगी में नोटबंदी के जमाने में हमें हमारी मदद नहीं की थी ।’
डॉ पन्त जी कभी उनको , कभी उनकी जांचों के गट्ठरों को , कभी उनकी अतिनिर्धन वर्ग में बने रहनेकी उनकी मानसिकता को तो कभी अपनी सीमाओं को देख रहे थे ।