नैन नशीलों से मय पिला दो तुम
* नैन नशीलों से मय पिला दो तुम *
****************************
नैन-नशीलों से ही मय पिला दो तुम,
सैर – सपाटा रूहों का करा दो तुम।
चार दिनों का जीवन है जगत मेला,
रैन – बसेरे से दिल मे बसा दो तुम।
आग बुझा दो प्यासा तन-बदन मेरा,
चाँद-चकोरी सूरत तो दिखा दो तुम।
रोक सका मतवालों को कहीं कोई,
प्रेम – दुलारी नींदों को चुरा लो तुम।
देख न पाया मनसीरत रज़ा तेरी,
प्रीत – पराई अपनी सी बना दो तुम।
*****************************
सुखविन्दर सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)