नैन (कवायद अपने आप को ढूढने की)
‘नैन’
शृंगार रस बिना ‘नैनों’ के अधूरा है,
‘नैनों’ से ही सुंदरता का विवरण पूरा है।
‘नैन’ हैं तो प्यार से वास्ता है,
‘नैन’ ही दिलों में उतरने का रास्ता है।
‘नैन’ ही हैं जो बिन तराज़ू के तोलते हैं,
ज़ुबान चुप रहने पर भी ‘नैन’ बोलते हैं।
जहां ‘नैन’ तीर तलवार और ख़ंजर हैं,
उन्ही ‘नैनों’ से दुनियावी मंजर हैं।
‘नैन’ अंगारे भी और स्नेह की बौछार भी,
‘नैन’ क्रोध के गोले तो सीतलता की बयार भी।
समुद्र और झील से गहरे हैं ‘नैन’,
कभी मचलते तो कभी ठहरे हैं ‘नैन’।
दुःख में बुझते और ख़ुशी में चश्ते हैं ‘नैन’,
भाव के साथ रोते और हंसते हैं ‘नैन’।
ख़ुशी और प्यार में आंसू ‘नैनों’ से गिरते हैं,
वो लोग कभी नहीं उठते जो ‘नैनों’ से गिरते हैं।
अच्छे हैं वो आंसू जो प्यार और ख़ुशी में ‘नैनों’ से
झरते हैं,
गिरावट की हद होती है जब लोग ‘नैनों’ से गिरते हैं।
लड़ रहे हैं, जानते हुए कि हर लड़ाई में संहार होता है,
सिर्फ़ ‘नैनों’ की ही लड़ाई है जिस में प्यार होता है।